मेरे घर का है एक कोना, ज़रा सूना सा, खाली सा
बस है दीवार पे तस्वीर, कुछ नाराज़ कुछ ख़ामोश
कभी ये बोलती थी, देती थी नसीहत, परेशां मेरी परेशानी पर
डाँटती थी, डपटती थी, कि ग़लती हो न जाए
कभी नाराज़गी बयाँ करती थी आँखों से मगर खामोश रहकर
और ग़लती हो तो सर पर हाथ रख, बा शिक़न, हौसला दिलाती थी
के मौजूद होने पर ही हिम्मत बंध सी जाती थी
न डर, कुछ कर गुज़र, है ताकत, ये बताती थी
अब ख़ामोश है कुछ अरसे से के नाराज़ है मुझसे
न कहती कविताएँ, ना कहानी, न शायरी, न ही किस्से
ज़रा जल्दी में थी शायद, जगह खाली सी करने को
मेरे घर के हर कोने को यूँ सूना सा करने को
अब बस दीवार है, कोना है, तस्वीर है बाकी
कुछ नाराज़, कुछ ख़ामोश, ज़रा सूनी, ज़रा ख़ाली
--------लिपिका -------
(Dedicated to my Dad)