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Thursday, 29 October 2015

ज़िन्दगी



इतना न सता 
ऐ ज़िन्दगी , 
तू मेरी मॉं की ममता बन जा
थक कर जब घर लौटूँ 
ऐ ज़िन्दगी
तू मेरी मॉं का अांचल बन जा
जो चाहूँ वो बिन माँगे दे दिया कर 
ऐ ज़िन्दगी,
 तू बस मेरी माँ की तरह बन जा
AnuYog 

Tuesday, 27 October 2015

Miracle of Love and Care


My 6 yr old girl is very fond of flowers and their fragrance. I have taught her from childhood that plucking flower from plant is like detatching a baby from her mother. She never plucks a flower, but whenever she goes to park, she picks those fallen on ground and asks me to keep them safe. By the time she gets home, they wither; leaving her very sad.

Yesterday, she picked 2 flowers. As we got home, I asked her to place one in water and other one in open. Not even a day, second flower started to lose its moisture, turned brown and started to crumple. Whereas, the first flower was still so fresh, smelling good.

Her little mind was amazed to see, how water could keep her lovely flower alive...

Today she received a very important learning in life - "Miracle of Love and Care"

How love and proper care could keep alive the flower that was separated from its plant. Its true for every form of life...
Love and care can do miracles...
Hatered, jealosy, negativity can kill... 

वक़्त

वक़्त 
वक़्त नहीं है उनके पास
 ऐसा नहीं कि प्यार नहीं है
लेकिन ये भी तो सच है न
रिश्तों के पौधों को सींचने के लिए वक़्त ज़रूरी होता है
नहीं तो रिश्ते मुरझा जाते हैं

 ऐसा नहीं कि वो चाहते नहीं 
लेकिन एहसास भी तो नहीं 
वो दर्द का एहसास,वो कमी का एहसास
एक डर सा लगता है
उनके एहसास के इंतज़ार में मेरे एहसास मुरझा न जाए

 ऐसा नहीं कि वो जताते नहीं 
लकिन रिश्ते का छोटा सा पौधा  वक़्त की चाहत भी रखता है
वक़्त के अभाव में पौधा पेड़ तो बन ही जाएगा
लेकिन ठीक उसी तरह जैसे सड़क किनारे का पेड़ 
बगिया का पेड़ बनने की चाहत में 
उनका वक़्त पाने की चाहत में 

एक नन्हा सा पौधा
AnuYog 

घर का एक कोना


मेरे घर का है एक कोना, ज़रा सूना सा, खाली सा
बस है दीवार पे तस्वीर, कुछ नाराज़ कुछ ख़ामोश

कभी ये बोलती थी, देती थी नसीहत, परेशां मेरी परेशानी पर
डाँटती थी, डपटती थी, कि ग़लती हो न जाए
कभी नाराज़गी बयाँ करती थी आँखों से मगर खामोश रहकर

और ग़लती हो तो सर पर हाथ रख, बा शिक़न, हौसला दिलाती थी
के मौजूद होने पर ही हिम्मत बंध सी जाती थी
न डर, कुछ कर गुज़र, है ताकत, ये बताती थी

अब ख़ामोश है कुछ अरसे से के नाराज़ है मुझसे
न कहती कविताएँ, ना कहानी, न शायरी, न ही किस्से

ज़रा जल्दी में थी शायद, जगह खाली सी करने को
मेरे घर के हर कोने को यूँ सूना सा करने को

अब बस दीवार है, कोना है, तस्वीर है बाकी
कुछ नाराज़, कुछ ख़ामोश, ज़रा सूनी, ज़रा ख़ाली

                                     --------लिपिका -------
(Dedicated to my Dad)