यूँ कभी खाली पन्नों में, ढूंढता हूँ शब्द कोई
के कुछ भटके से ही सही, पकड़ में आ जाएँ
कुछ मन की जीवन की, सच्ची झूठी सुना जाएँ
और छोटी मोटी बातों की सुन्दर सी अभिव्यक्ति कर जाएँ
आड़ी तिरछी सी ही सही, इस मन को खुश करने को
इन खाली पन्नों को भर जाएँ, एक कविता सी बन जाएँ
पर जीवन की दौड़ धूप में, कुछ पल जो पकड़ना चाहूँ भी
शब्दों में पिरोने से पहले, सरक कर बिखर जाते हैं कहीं
एकटक तकता रहता हूँ इन साफ़ पाक पन्नों को,
इस चाह में के कुछ लम्हें, भीनी बारिश से टपक जाएँ,
एक कविता सी बन जाएँ
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पर आज यूँ फिर लगता है, के पन्ने खाली रह जाएंगे
अपनी कहने सुनने को, फिर से शब्द न मिल पाएंगे