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Monday, 27 February 2017
ज़िंदगी के हसीन लम्हे !!!!!!!!
Thursday, 23 February 2017
वो अहसास अपना सा .........
एक ज़माना था जब अपने Family और Friends के Birthday और Aniversary याद रखा करते थे
Wednesday, 22 February 2017
*मेरी चाय*
Tuesday, 21 February 2017
हाँ! रंग चढ़ा है मुझ पर मेरी जीत का।
एक बार फिर आप सब के समक्ष मेरे कुछ विचार जो है आज बेटियों को समर्पित। बेटियाँ जिनके आ जाने से भर जाती है घर मे उर्जा।
हाँ! रंग चढ़ा है मुझ पर मेरी जीत का......
हाँ! रंग चढ़ा है मुझ पर मेरी जीत का,
हाँ! कर दिखाया है मैंने अपने वजूद का सर ऊँचा,
हाँ! कर दिया है साबित मैंने कि मै भी हूँ जिन्दा,
हाँ! मै हूँ एक बेटी जिसने लगा दिया है चाँद की चाँदनी पर तमग़ा।
अब नही रूकूँगी मै,
अब नही झुकूँगी मै,
दिखाऊंगी अब अपना हुनर
तूफानो मे पड़ी धूल को झाड़ कर।
हाँ! रंग चढ़ा है मुझ पर मेरी जीत का।
लाचारीयत अब न घेर पाएगी मुझे,
बेचारगी अब न दे पाएगी पनाह मुझे,
दिया है मेरे माँ बाबा ने भरोसा मुझे,
दिखाऊंगी अब अपना हुनर तूफानो मे पड़ी धूल को झाड़ कर।
हाँ रंग चढ़ा है मुझ पर मेरी जीत का.....
अब कभी बुझ न पाए लौ कभी कन्या के भूण की
करती हूँ आश्वस्त लेकर आऊंगी मै क्रान्ति ऐसे हुजूम की जो लेकर चलेगी मशाल मेरे वजूद की।
हाँ! कर दिया है साबित मैंने कि मै हूँ जिन्दा,
हाँ! मै हूँ एक बेटी जिसने लगा दिया है चाँद की चाँदनी पर तमग़ा।
लीना निर्वान
अनुभव
आप सब के समक्ष एक बार फिर मेरे जीवन का अनोखा अनुभव। 😊
जाड़ों की धूप में
पसार कर अपना ही अनुरूप मैं,
बंद कर चक्षुओं को,
थी कही शून्य मे मैं।
तेज था सूरज का चहूं ओर
जिसके मध्य खड़ी थी अंधकार में मैं अबोध।
महसूस करना चाहती थी
उस तेज को मैं,
पर बोध नहीं था कब, किस तरह पहुंच पाऊंगी उस तेज के समीप मैं।
यूं तो है संवास मे मेरे अपने
लेकिन फिर भी है तृष्णा कहीं,
जानना चाहती हूं क्या है उस ओर
जो बुला रहा है मुझे शून्य से अपनी ओर।
जिसका है अथाह प्रकाश
जिसने रंग दिया है 'लाल'
ये नीला आकाश।
बंद कर चक्षुओं को
थी कही शून्य मे मैं
तेज था सूरज का चहूं ओर
जिसके मध्य खड़ी थी अंधकार में मैं अबोध।
लीना निर्वान
अनमोल उपहार
आप सब के समक्ष ....
अनमोल उपहार
सृष्टि का ये अजब खेल था
जब हमारा हुआ मेल था।
याद है मुझे आज भी वो दिन जब
बस यूँही कर रहे थे तुम मेरा इन्तज़ार,
जब मैंने दिया था तुम्हारे हाथो मे अपना हाथ।
बीत गया था पूरा दिन यूँ ही सुनते सुनाते तुम्हारे मन की बात,
पकड़ कर मेरा हाथ शायद ढूंढ रहे थे मेरी और अपनी लकीरों मे जुड़ते हमारे भविष्य का सार।
तभी तो मौन रह कर तुमने किया था
मन ही मन विचलित होते हुए मेरा
सालों-साल इन्तज़ार ।
तुम से मिल कर मुझे हुआ कुछ ऐसा ऐहसास मानो सृष्टि ने दिया हो मुझे मेरा अनमोल उपहार ।
उदार मन, शांत चित और धीरज है तुम मे अपार,
सृष्टि ने दिया मुझे मेरा सबसे अनमोल उपहार ।
भिन्न थी आदते हमारी, भिन्न थे विचार
तब भी विधाता ने जोड़ दिए हमारे मन के तार ।
अब ले चलो मुझे बन कर सारथी मेरे
क्योंकि जीत लिया है मन मेरा तुम ने बन कर मेरा विधाता, मेरा मान, मेरा अभिमान ।
नतमस्तक हूँ मैं ईश्वर के सामने जिन्होंने मिला दिया हमें, बना कर तुम्हे कृष्ण और मुझे राधा का अवतार ।
लीना निर्वान 🙏🏼😊
Wednesday, 15 February 2017
क्या से क्या हो गए
ढूंढते हैं उसको जिसे कहीं छोड़ आए हैं
वो मुस्कराहट, वो बेबाकपन जो कहीं भूल आए हैं
कई चेहरों का नक़ाब ओढ़े असल से जुदा हो गए
ज़िन्दगी आगे बढ़ गयी हम क्या से क्या हो गए
माथे से लेकर बिस्तर की सिलवटें जो मेरी थीं
वो चैन, वो ठहाके, वो नींदें जो मेरी थीं
कई ख्वाइशों के बोझ के तले रुबा हो गए
ज़िन्दगी आगे बढ़ गयी हम क्या से क्या हो गए
ख्यालों से लेकर हौसलों की तिशनगी थी मेरी
उन्हें पूरा करने न करने की आज़ादी थी मेरी
कई हौसलों के ज़ोर में बेनिशाँ हो गए
ज़िन्दगी आगे बढ़ गयी हम क्या से क्या हो गए
यूँ नहीं के ज़िन्दगी से कोई शिकवा है हमें
इस डोर, इस बंदिश का भी दरकार है हमें
कई आहटों के शोर में बेज़ुबान हो गए
ज़िन्दगी आगे बढ़ गयी हम क्या से क्या हो गए