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Thursday, 27 July 2017

नेताबाज़ी

जाने कैसे ये नेता है जो औरों का क्रेडिट खाते हैं
औरों के हिस्से का खा न जाने कैसे पचा जाते हैं

जाने कैसे ये नेता हैं जिनसे कुछ भी सुलझता नहीं
सभाओं में गुंडागर्दी बदमाशी को नेतागिरी बतलाते हैं

बरसाती मेंढकों से कुछ तो र्टर र्टर करने आएंगे
जाने कैसे निष्पक्ष बता एक पक्ष से ही टर्राते हैं

भलाई के नाम पर अब तक सिर्फ क्रेडिट चुराया है
न जाने कैसे नेता हैं चोरी पर भी इतराते हैं

झूटी बात बनाने में इन नेताओं का कोई तोड़ नहीं
न जाने कैसे नेता हैं दूसरे की गिना, रोते ही जाते हैं

Wednesday, 19 July 2017

मेरा गाँव

यूं उजाड़ है मेरा गाँव सूनी है मेरी छानी
के कभी ठिठोलियाँ बसती थी यहाँ
कभी अखरोट की छाल सी सख्त थी नींव इसकी
अब पिता की बस याद रह गयी है जहाँ

यूँ बिखरी है मेरे घर की पहचान
कि खिलता था कभी फूलों सा व्यक्तित्व यहाँ
मिलती थी पगडंडी में दादी की बेंत और दरांत
देवता की ज्योति करती घर घर दीप्तिमान जहाँ

यूँ खोई सी है मेरे खेतों की रौनक
के छेम्मी, मटर से फूलता था सीना इसका
कुछ देर रुक बादल भी आनंदित हो उठता था
गर्म हवा भी पानी सी भिगोती थी जहाँ

तकती है आस में उन मुस्कुराहटों की
यादें भी धुंधलाती जा रही हैं यहाँ
बूढ़ी हो चली हैं घर की आंखें, चार दीवारी
थमती जा रहीं हैं बाड़े की सांसें जहाँ

कुछ देर और रुक के बटोर लूं वो पल
बस किस्सों में सुने थे जो वहाँ
खुल के कुछ और साँसें भर लूँ
न जाने फिर कब आना हो यहाँ