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Friday, 17 November 2017

बचपन

गर बचपन सा होता बचपन
मीठा बचपन अल्हड़ बचपन
गलियों में कहीं पतंग उड़ाता
करता अक्कड़ बक्कड़ बचपन

सुबह जो होती बड़ी कड़क की
बस्ते से भी भारी बचपन
छुट्टी की घंटी बजते ही
मूगफली की छाल सा बचपन

गर पहले सा होता बचपन
धूल मिट्टी से सना सा बचपन
छुप के बागों के पेड़ों चढ़
कच्ची अमिया खाता बचपन

मेरे बचपन की शामों में
निडर हो मदमस्त घूमता
खुले आसमां के तारे गिन
चंदा मामा गाता बचपन

गर नीला रह जाता बचपन
हरे भरे खेतों का बचपन
नदियों और तालाबों के संग
डुबकी खूब लगाता बचपन

दोस्त की साईकल दोस्त की पेंसिल
दोस्त का खाने का डब्बा अच्छा था
फिर हाथों को सान सान कर
पेन की स्याही चुराता बचपन

गर सीधा सा होता बचपन
फिर बैटिंग को लड़ता बचपन
दोस्त पर पड़ती टीचर की बेंत पर
अपना हाथ बढ़ाता बचपन

काश पहले सा होता बचपन
आज के बचपन के मुकाबले
कंप्यूटर और मोबाइल से बाहर
खूब शोर मचाता बचपन
--लिपिका