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Tuesday, 24 November 2015

इक मीठी सी उलझन

This is a song on a very common yet sensitive social issue "female foeticide", written by me few months back...thought of sharing it here...(the feelings portrayed are of the baby inside the mothers womb, as to how it feels if ever dey could express...!!)


इक मीठी सी उलझन में हूँ..
ख्वाबो के पागलपन में हूँ..
अब थाम लिया जो ये आँचल..
रंग भरने की हलचल में हूँ...

किसने जाना रूप क्या होगा..
कैसे जानू मैं क्या रंग हूँ..
मुझको तो अब बात ये सूझे..
बस जो हूँ तेरा ही साया हूँ,
हाँ अक्स हूँ..बस वो अक्स ही हूँ मैं..
अंधेरों से जो तुझमे समाया हूँ...

पर आज ये कुछ महसूस हुआ है..
हवा में कैसा शोर घुला है,,,
कानो से ये दिल ने सुना है....

कि लड़की हूँ ....दर्पण नहीं हूँ मैं तेरा
धड़कन हूँ, धड़क भी लूँ..
ये हक़ नहीं अब मेरा,,,,

कैसे तुमने सोच लिया माँ..कि मैं तुमपे भोज बनूँगी...
कैसे जान लिया ये पापा..कि जीवन भर दर्द ही दूंगी....

हम्म्म्म्म,,,,
कल की ही तो बात है,
यूँ अंदर इतरा गई थी...
मन ही मन मैं अँधेरो में..
यूँ समझो , लहरा रही थी,,,
जब माँ तुमसे ये सुना था, हाँ माँ तुमने ही कहा था...
सूरज हो या फिर हो चाँद,,,
रौशनी रुके ना उसकी।।।

पापा तुम भी कितने खुश थे..
मुझको ये एहसास हुआ था,,,
फिर अपने अंदाज़ में झुककर , तुमने मुझको चूम लिया था।।।

अब ना जाने सोच लिया क्या...
अब क्यों जाने मोड़ लिया मुह..
बेटी हूँ , मैं दर्द ना दूंगी...कैसे सबको समझाऊँ,,

दर्द तो ये है, जो हो रहा है...
कैसे तुम्हे दिखलाऊं...!!!

जाने कितनी बार हुआ है, जाने कितनी बार ये होगा।।
मासूम से एक एहसाह को , फिर यूँ ही दफ़न हो जाना होगा,,
 यूँ ही दफ़्न हो जाना होगा,,,,यूँ ही दफ़न हो जाना होगा!!!!!!!!

Indu kohli





तुम पर कविता लिखता हूँ

जब पास नहीं तुम होते हो
और मन विचलित हो जाता है
ऐसे में दिल बहलाने को
मैं तुम पर कविता लिखता  हूँ।

सूनी डगर पर, सूने सफर पर
एकांत में कभी, जब शून्य हो जाता हूँ
हज़ारों की भीड़ में,  शहर की रफ़्तार में
किसी मुड़े मोड़ पर, जब थक सा जाता हूँ
तुम्हारा साथ ऐसे में पाने को
मैं तुम पर कविता लिखता  हूँ।

नवजात की किलकारियों  पे,यौवन की मुस्कान पे
बूढ़ी दादी पे कभी, जब मोहित  हो जाता हूँ
सावन की फुहार में, फागुन की साँझ में
देवदार की सुगंध में, जब सम्मोहित हो जाता हूँ
उस  भाव को तुमसे बाँटने को प्रिये
मैं तुम पर कविता लिखता  हूँ।

मैं तुम पर कविता लिखता  हूँ
क्यों  तुम पर कविता लिखता  हूँ ?
प्रभाव से, कदाचित स्वाभाव से
लिख जाता है या लिखता हूँ ?
अनजान बन पहेली सुलझाने को
मैं फिर तुम पर कविता लिखता  हूँ।

Monday, 23 November 2015

सहयोग

शायद आज मैं कुछ लिख पाऊँ


भावनाओं को शब्दों में कहीं पिरो लाऊँ
शायद आज मैं कुछ लिख पाऊँ 

 आज कुछ लिख डालूँ 
                  भारत के सम्मान पर, 
                  क्रान्तिकारियों के बलिदान पर 
                   या 
                   माँ की ममता देख आऊं, 
                   उसका छोटा सा आँचल सींच लाऊँ 
                   शायद आज मैं  कुछ लिख पाऊँ

 आज कुछ लिख डालूँ 
                  यौवन की उस फुहाड़ पर, 
                  बरसात की वो रात पर 
                  या 
                  मित्रों की मंडली में हो आऊँ, 
                  साँझ के हंसी ठहाके बटोर लाऊँ 
                  शायद आज मैं  कुछ लिख पाऊँ

आज कुछ लिख डालूँ 
    अपने खेतों की लहराती फंसलों पर, 
    दूर जंगल से आती उस भीनी सी खुशबू  पर 
    या 
    अपने गांव के गलियारे का चक्कर लगा आऊँ 
    बचपन के दोस्तों को जरा सलाम कर आऊँ 
              शायद आज मैं  कुछ लिख पाऊँ


भावनाओँ को शब्दों में न सही ,
बस दिल में उतार पाऊँ
आज कुछ लिखूं या नहीँ 
बस बीते समय में खो जाऊँ 






Monday, 9 November 2015

Joy of Festivals

The joy of festivals all around us,
The happiness knowing no bounds,
Joyous cries of 'Happy Diwali', 'Merry Christmas,
Spread through the air around us.

Come Diwali, there is a joyous atmosphere,
Lamps, candles and diyas,
Illuminate the beautiful moonless night,
Barfi, Kaju Katli, cashew nuts and walnuts,
All grace the Diwali atmosphere of happiness.

Come Christmas, the atmosphere becomes chilly,
But not so chilly, that it cannot be warmed by,
the warm cries of 'Merry Christmas' ,
Commemorating the birth of Jesus Christ,
Christmas is a time to rejoice.

The joy of festivities is spread all around,
Celebrate with caution,or suffer a wound,
Be it sacred Diwali or be it Merry Christmas,
Festivals constitute the essence of our great land !

Monday, 2 November 2015

हौंसलौं की उड़ान


छोटी-छोटी ख़्वाहिशें लिए उड़ना चाहती हूँ,
इस विशाल आकाश को देख मचल उठती हूँ,
अपने पंखों को समेटे हुए,
नीले आकाश को देख सम्मोहित हो उठती हूँ,
पंखों को पसार कर दूर उड़ जाना चाहती हूँ,
पर उसी क्षण सहम कर रुक जाती हूँ,

इतना विशालतम आकाश एक सिरहन सी दे जाता है,
एक डर कहीं से सामने आ जाता है,
क्या मैं अपने पंख पसार पाऊँगी ,
इस विशाल आकाश में पक्षी और हवा से नाता बना पाऊँगी,
फिर डर कर अपने पंखों को समेट कर, 
एक कोने में दुबक कर बैठ जाती हूँ , 
पर फिर न जाने कहाँ से एक उमंग, एक लहर सी दौड़ आती है,
और फिर से उड़ने की ख़्वाहिश जग जाती है,
इस नीले आकाश का सम्मोहन बार-बार अपनी ओर पुकारता है,

आज फिर से अपने हौंसलौं को पंखों में पसारे
उड़ने को तैयार हूँ 
नीले अाकाश की ऊँचाइयों से,
तेज़ चलती हवाओं से,
पक्षियों की ऊँची उड़ान से,
नाता जोड़ने को तैयार हूँ मैं,
अब जान गई हूँ मैं , पंख मिले है उड़ने को,
ये आकाश, पक्षी,हवाएँ सभी मचल रहें है मुझसे मिलने को।

Thursday, 29 October 2015

ज़िन्दगी



इतना न सता 
ऐ ज़िन्दगी , 
तू मेरी मॉं की ममता बन जा
थक कर जब घर लौटूँ 
ऐ ज़िन्दगी
तू मेरी मॉं का अांचल बन जा
जो चाहूँ वो बिन माँगे दे दिया कर 
ऐ ज़िन्दगी,
 तू बस मेरी माँ की तरह बन जा
AnuYog 

Tuesday, 27 October 2015

Miracle of Love and Care


My 6 yr old girl is very fond of flowers and their fragrance. I have taught her from childhood that plucking flower from plant is like detatching a baby from her mother. She never plucks a flower, but whenever she goes to park, she picks those fallen on ground and asks me to keep them safe. By the time she gets home, they wither; leaving her very sad.

Yesterday, she picked 2 flowers. As we got home, I asked her to place one in water and other one in open. Not even a day, second flower started to lose its moisture, turned brown and started to crumple. Whereas, the first flower was still so fresh, smelling good.

Her little mind was amazed to see, how water could keep her lovely flower alive...

Today she received a very important learning in life - "Miracle of Love and Care"

How love and proper care could keep alive the flower that was separated from its plant. Its true for every form of life...
Love and care can do miracles...
Hatered, jealosy, negativity can kill... 

वक़्त

वक़्त 
वक़्त नहीं है उनके पास
 ऐसा नहीं कि प्यार नहीं है
लेकिन ये भी तो सच है न
रिश्तों के पौधों को सींचने के लिए वक़्त ज़रूरी होता है
नहीं तो रिश्ते मुरझा जाते हैं

 ऐसा नहीं कि वो चाहते नहीं 
लेकिन एहसास भी तो नहीं 
वो दर्द का एहसास,वो कमी का एहसास
एक डर सा लगता है
उनके एहसास के इंतज़ार में मेरे एहसास मुरझा न जाए

 ऐसा नहीं कि वो जताते नहीं 
लकिन रिश्ते का छोटा सा पौधा  वक़्त की चाहत भी रखता है
वक़्त के अभाव में पौधा पेड़ तो बन ही जाएगा
लेकिन ठीक उसी तरह जैसे सड़क किनारे का पेड़ 
बगिया का पेड़ बनने की चाहत में 
उनका वक़्त पाने की चाहत में 

एक नन्हा सा पौधा
AnuYog 

घर का एक कोना


मेरे घर का है एक कोना, ज़रा सूना सा, खाली सा
बस है दीवार पे तस्वीर, कुछ नाराज़ कुछ ख़ामोश

कभी ये बोलती थी, देती थी नसीहत, परेशां मेरी परेशानी पर
डाँटती थी, डपटती थी, कि ग़लती हो न जाए
कभी नाराज़गी बयाँ करती थी आँखों से मगर खामोश रहकर

और ग़लती हो तो सर पर हाथ रख, बा शिक़न, हौसला दिलाती थी
के मौजूद होने पर ही हिम्मत बंध सी जाती थी
न डर, कुछ कर गुज़र, है ताकत, ये बताती थी

अब ख़ामोश है कुछ अरसे से के नाराज़ है मुझसे
न कहती कविताएँ, ना कहानी, न शायरी, न ही किस्से

ज़रा जल्दी में थी शायद, जगह खाली सी करने को
मेरे घर के हर कोने को यूँ सूना सा करने को

अब बस दीवार है, कोना है, तस्वीर है बाकी
कुछ नाराज़, कुछ ख़ामोश, ज़रा सूनी, ज़रा ख़ाली

                                     --------लिपिका -------
(Dedicated to my Dad)