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Monday, 2 November 2015

हौंसलौं की उड़ान


छोटी-छोटी ख़्वाहिशें लिए उड़ना चाहती हूँ,
इस विशाल आकाश को देख मचल उठती हूँ,
अपने पंखों को समेटे हुए,
नीले आकाश को देख सम्मोहित हो उठती हूँ,
पंखों को पसार कर दूर उड़ जाना चाहती हूँ,
पर उसी क्षण सहम कर रुक जाती हूँ,

इतना विशालतम आकाश एक सिरहन सी दे जाता है,
एक डर कहीं से सामने आ जाता है,
क्या मैं अपने पंख पसार पाऊँगी ,
इस विशाल आकाश में पक्षी और हवा से नाता बना पाऊँगी,
फिर डर कर अपने पंखों को समेट कर, 
एक कोने में दुबक कर बैठ जाती हूँ , 
पर फिर न जाने कहाँ से एक उमंग, एक लहर सी दौड़ आती है,
और फिर से उड़ने की ख़्वाहिश जग जाती है,
इस नीले आकाश का सम्मोहन बार-बार अपनी ओर पुकारता है,

आज फिर से अपने हौंसलौं को पंखों में पसारे
उड़ने को तैयार हूँ 
नीले अाकाश की ऊँचाइयों से,
तेज़ चलती हवाओं से,
पक्षियों की ऊँची उड़ान से,
नाता जोड़ने को तैयार हूँ मैं,
अब जान गई हूँ मैं , पंख मिले है उड़ने को,
ये आकाश, पक्षी,हवाएँ सभी मचल रहें है मुझसे मिलने को।

4 comments:

  1. वाह अनु! बहुत सुंदर.....

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    1. धन्यवाद कविता जी .....:)

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  2. the first thing which struck to my mind after reading first few Lines is...........
    I believe I can fly.........by Bryan Adams.
    nice one mam.

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  3. This comment has been removed by the author.

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