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Tuesday, 27 October 2015

घर का एक कोना


मेरे घर का है एक कोना, ज़रा सूना सा, खाली सा
बस है दीवार पे तस्वीर, कुछ नाराज़ कुछ ख़ामोश

कभी ये बोलती थी, देती थी नसीहत, परेशां मेरी परेशानी पर
डाँटती थी, डपटती थी, कि ग़लती हो न जाए
कभी नाराज़गी बयाँ करती थी आँखों से मगर खामोश रहकर

और ग़लती हो तो सर पर हाथ रख, बा शिक़न, हौसला दिलाती थी
के मौजूद होने पर ही हिम्मत बंध सी जाती थी
न डर, कुछ कर गुज़र, है ताकत, ये बताती थी

अब ख़ामोश है कुछ अरसे से के नाराज़ है मुझसे
न कहती कविताएँ, ना कहानी, न शायरी, न ही किस्से

ज़रा जल्दी में थी शायद, जगह खाली सी करने को
मेरे घर के हर कोने को यूँ सूना सा करने को

अब बस दीवार है, कोना है, तस्वीर है बाकी
कुछ नाराज़, कुछ ख़ामोश, ज़रा सूनी, ज़रा ख़ाली

                                     --------लिपिका -------
(Dedicated to my Dad)


17 comments:

  1. बहुत खूब। दिल को छू गई यह कविता।

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  2. अच्छा लिखा है।भाव अच्छे से व्यक्त किये गए हैं। समय के प्रवाह में बहते दो तिनके साथ चलते हैं और बिछड़ते हैं। यही उनकी नियति है। हम वे तिनके हैं जो साथ चले थे । उस रूह ने जिस्मानी रूप में हमे छुआ था यही कुछ कम नहीं। वह तस्वीर एक कोने को भर कर भी घर को अकेला छोड़ देती है लेकिन यादें मन काकोई कोना सुनसान नहीं छोड़तीं। भरेपूरे होने का अहसास दिलाती हैं। प्रतिभा है , लिखती रहो।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद

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  3. Wow too good 🌟
    बचपन की कुछ पुरानी यादें ताज़ा हो गई।

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  4. Indeed some matchless emotions which can jus be felt...!!!

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  5. Wonderful outcome of beautiful emotions,, very well penned.,,keep writing

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  6. The cadence with which you have penned your emotions through such simple words is amazing. Deja vu moment for me...........as main bhee apne ghar pahunch gaya tha. Keep writing in hindi.

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  7. भाव विभोर कर दिया आपकी कविता ने. अति सुंदर.

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