This is a song on a very common yet sensitive social issue "female foeticide", written by me few months back...thought of sharing it here...(the feelings portrayed are of the baby inside the mothers womb, as to how it feels if ever dey could express...!!)
इक मीठी सी उलझन में हूँ..
ख्वाबो के पागलपन में हूँ..
अब थाम लिया जो ये आँचल..
रंग भरने की हलचल में हूँ...
किसने जाना रूप क्या होगा..
कैसे जानू मैं क्या रंग हूँ..
मुझको तो अब बात ये सूझे..
बस जो हूँ तेरा ही साया हूँ,
हाँ अक्स हूँ..बस वो अक्स ही हूँ मैं..
अंधेरों से जो तुझमे समाया हूँ...
पर आज ये कुछ महसूस हुआ है..
हवा में कैसा शोर घुला है,,,
कानो से ये दिल ने सुना है....
कि लड़की हूँ ....दर्पण नहीं हूँ मैं तेरा
धड़कन हूँ, धड़क भी लूँ..
ये हक़ नहीं अब मेरा,,,,
कैसे तुमने सोच लिया माँ..कि मैं तुमपे भोज बनूँगी...
कैसे जान लिया ये पापा..कि जीवन भर दर्द ही दूंगी....
हम्म्म्म्म,,,,
कल की ही तो बात है,
यूँ अंदर इतरा गई थी...
मन ही मन मैं अँधेरो में..
यूँ समझो , लहरा रही थी,,,
जब माँ तुमसे ये सुना था, हाँ माँ तुमने ही कहा था...
सूरज हो या फिर हो चाँद,,,
रौशनी रुके ना उसकी।।।
पापा तुम भी कितने खुश थे..
मुझको ये एहसास हुआ था,,,
फिर अपने अंदाज़ में झुककर , तुमने मुझको चूम लिया था।।।
अब ना जाने सोच लिया क्या...
अब क्यों जाने मोड़ लिया मुह..
बेटी हूँ , मैं दर्द ना दूंगी...कैसे सबको समझाऊँ,,
दर्द तो ये है, जो हो रहा है...
कैसे तुम्हे दिखलाऊं...!!!
जाने कितनी बार हुआ है, जाने कितनी बार ये होगा।।
मासूम से एक एहसाह को , फिर यूँ ही दफ़न हो जाना होगा,,
यूँ ही दफ़्न हो जाना होगा,,,,यूँ ही दफ़न हो जाना होगा!!!!!!!!
Indu kohli
इक मीठी सी उलझन में हूँ..
ख्वाबो के पागलपन में हूँ..
अब थाम लिया जो ये आँचल..
रंग भरने की हलचल में हूँ...
किसने जाना रूप क्या होगा..
कैसे जानू मैं क्या रंग हूँ..
मुझको तो अब बात ये सूझे..
बस जो हूँ तेरा ही साया हूँ,
हाँ अक्स हूँ..बस वो अक्स ही हूँ मैं..
अंधेरों से जो तुझमे समाया हूँ...
पर आज ये कुछ महसूस हुआ है..
हवा में कैसा शोर घुला है,,,
कानो से ये दिल ने सुना है....
कि लड़की हूँ ....दर्पण नहीं हूँ मैं तेरा
धड़कन हूँ, धड़क भी लूँ..
ये हक़ नहीं अब मेरा,,,,
कैसे तुमने सोच लिया माँ..कि मैं तुमपे भोज बनूँगी...
कैसे जान लिया ये पापा..कि जीवन भर दर्द ही दूंगी....
हम्म्म्म्म,,,,
कल की ही तो बात है,
यूँ अंदर इतरा गई थी...
मन ही मन मैं अँधेरो में..
यूँ समझो , लहरा रही थी,,,
जब माँ तुमसे ये सुना था, हाँ माँ तुमने ही कहा था...
सूरज हो या फिर हो चाँद,,,
रौशनी रुके ना उसकी।।।
पापा तुम भी कितने खुश थे..
मुझको ये एहसास हुआ था,,,
फिर अपने अंदाज़ में झुककर , तुमने मुझको चूम लिया था।।।
अब ना जाने सोच लिया क्या...
अब क्यों जाने मोड़ लिया मुह..
बेटी हूँ , मैं दर्द ना दूंगी...कैसे सबको समझाऊँ,,
दर्द तो ये है, जो हो रहा है...
कैसे तुम्हे दिखलाऊं...!!!
जाने कितनी बार हुआ है, जाने कितनी बार ये होगा।।
मासूम से एक एहसाह को , फिर यूँ ही दफ़न हो जाना होगा,,
यूँ ही दफ़्न हो जाना होगा,,,,यूँ ही दफ़न हो जाना होगा!!!!!!!!
Indu kohli