थक जाता हूँ तो सोचता हूँ, की आराम से बैठूँगा अभी,
क्यों भूल जाता हूँ की जिंदगी भी नए इम्तिहान लिए बैठी है।
लगता है पूरे कर आया हूँ काम सारे,
क्यों भूल जाता हूँ की जिंदगी अभी नए फरमान लिए बैठी है।
उम्र सारी आराम की चाह में दौड कर गुजार दी,
बचपन ने कहा मेहनत से पढ़ ले, खेल कूद को अभी उम्र पडी है।
जवानी ने कहा कुछ कमा ले, कुछ बचा ले उम्र बहुत बड़ी है।
बहुत बड़ी बाजीगर है, ये जिंदगी,
जन्म से आज तक बस करतब दिखाती आई है
और अभी भी न जाने कितने नए आयाम लिए बैठी है।
बड़ी उलझन में हूँ, समझ नही पाता हूँ,
जिंदगी में मेहनत है या मेहनत ही जिंदगी है,
जीने की चाहत में रोज मरे जाता हूँ,
परेशान, उदास आराम की आस लिए बैठा हूँ,
पर मेरी परेशानियों को छोटा बता, ये जालिम जिंदगी, देखो रोज नई मुस्कान लिए बैठी है।
उम्र के आखिरी पड़ाव (बुढापा) पर आया तो ये एहसास हुआ की जिस तरह दुनिया गोल है, इस जिंदगी का भी नही कोई छोर है।
बचपन से जवानी भागता रहा नाम कमाने में, बची उम्र दौड़ता रहा वो नाम बचाने में।
सोचता था इंसान हूँ मैं, समझा ही नही उम्र गुजार दी अपने दांतों से पूंछ दबाने में।।
क्यों भूल जाता हूँ की जिंदगी भी नए इम्तिहान लिए बैठी है।
लगता है पूरे कर आया हूँ काम सारे,
क्यों भूल जाता हूँ की जिंदगी अभी नए फरमान लिए बैठी है।
उम्र सारी आराम की चाह में दौड कर गुजार दी,
बचपन ने कहा मेहनत से पढ़ ले, खेल कूद को अभी उम्र पडी है।
जवानी ने कहा कुछ कमा ले, कुछ बचा ले उम्र बहुत बड़ी है।
बहुत बड़ी बाजीगर है, ये जिंदगी,
जन्म से आज तक बस करतब दिखाती आई है
और अभी भी न जाने कितने नए आयाम लिए बैठी है।
बड़ी उलझन में हूँ, समझ नही पाता हूँ,
जिंदगी में मेहनत है या मेहनत ही जिंदगी है,
जीने की चाहत में रोज मरे जाता हूँ,
परेशान, उदास आराम की आस लिए बैठा हूँ,
पर मेरी परेशानियों को छोटा बता, ये जालिम जिंदगी, देखो रोज नई मुस्कान लिए बैठी है।
उम्र के आखिरी पड़ाव (बुढापा) पर आया तो ये एहसास हुआ की जिस तरह दुनिया गोल है, इस जिंदगी का भी नही कोई छोर है।
बचपन से जवानी भागता रहा नाम कमाने में, बची उम्र दौड़ता रहा वो नाम बचाने में।
सोचता था इंसान हूँ मैं, समझा ही नही उम्र गुजार दी अपने दांतों से पूंछ दबाने में।।