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Sunday, 7 May 2017

जीवन चक्र

थक जाता हूँ तो सोचता हूँ, की आराम से बैठूँगा अभी,
क्यों भूल जाता हूँ की जिंदगी भी नए इम्तिहान लिए  बैठी है।
लगता है पूरे कर आया हूँ काम सारे,
क्यों भूल जाता हूँ की जिंदगी अभी नए फरमान लिए बैठी है।

उम्र सारी आराम की चाह में दौड कर गुजार दी,
बचपन ने कहा मेहनत से पढ़ ले, खेल कूद को अभी उम्र पडी है।
जवानी ने कहा कुछ कमा ले, कुछ बचा ले उम्र बहुत बड़ी है।
बहुत बड़ी बाजीगर है, ये जिंदगी,
जन्म से आज तक बस करतब दिखाती आई है
और अभी भी न जाने कितने नए आयाम लिए बैठी है।

बड़ी  उलझन में हूँ, समझ नही पाता हूँ,
जिंदगी में मेहनत है या मेहनत ही जिंदगी है,
जीने की चाहत में रोज मरे जाता हूँ,
परेशान, उदास आराम की आस लिए बैठा हूँ,
पर मेरी परेशानियों को छोटा बता, ये जालिम जिंदगी, देखो रोज नई मुस्कान लिए बैठी है।

 उम्र के आखिरी पड़ाव (बुढापा) पर आया तो ये एहसास हुआ की जिस तरह दुनिया गोल है, इस जिंदगी का भी नही कोई छोर है।
बचपन से जवानी भागता रहा नाम कमाने में, बची उम्र दौड़ता रहा वो नाम बचाने में।
सोचता था इंसान हूँ मैं, समझा ही नही उम्र गुजार दी अपने दांतों से पूंछ दबाने में।।

Tuesday, 2 May 2017

सब शायर हुए फिरते हैं

हर बात पे बेअदबी का मिज़ाज़ मिलता है
वो चेहरे पे शराफत का नकाब लिए फिरते हैं

मीनारें गिरें तो फिर संवार दी जाती हैं
उनका ख़ालिक़ भी क्या करे जो एहद ए वफ़ा में गिरते हैं

खास ये है कि जो खुद पे अमल करना था
वो नसीहत औरों को दिए फिरते हैं

उलझे हैं कुछ इस तरह तेरे अल्फ़ाज़ों में ऐ शायर
तुकबंदी का रेख्ता लिए फिरते हैं

पर कमाल है ये तब यकीन होता है
जब जवाबजोरी में चोरी की शायरी दिए फिरते हैं

मगर गुरुर ए रंजिश नहीं फक्र है शायर
हमारी सोहबत में सब शायर हुए फिरते हैं