हर बात पे बेअदबी का मिज़ाज़ मिलता है
वो चेहरे पे शराफत का नकाब लिए फिरते हैं
मीनारें गिरें तो फिर संवार दी जाती हैं
उनका ख़ालिक़ भी क्या करे जो एहद ए वफ़ा में गिरते हैं
खास ये है कि जो खुद पे अमल करना था
वो नसीहत औरों को दिए फिरते हैं
उलझे हैं कुछ इस तरह तेरे अल्फ़ाज़ों में ऐ शायर
तुकबंदी का रेख्ता लिए फिरते हैं
पर कमाल है ये तब यकीन होता है
जब जवाबजोरी में चोरी की शायरी दिए फिरते हैं
मगर गुरुर ए रंजिश नहीं फक्र है शायर
हमारी सोहबत में सब शायर हुए फिरते हैं
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