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Tuesday, 2 May 2017

सब शायर हुए फिरते हैं

हर बात पे बेअदबी का मिज़ाज़ मिलता है
वो चेहरे पे शराफत का नकाब लिए फिरते हैं

मीनारें गिरें तो फिर संवार दी जाती हैं
उनका ख़ालिक़ भी क्या करे जो एहद ए वफ़ा में गिरते हैं

खास ये है कि जो खुद पे अमल करना था
वो नसीहत औरों को दिए फिरते हैं

उलझे हैं कुछ इस तरह तेरे अल्फ़ाज़ों में ऐ शायर
तुकबंदी का रेख्ता लिए फिरते हैं

पर कमाल है ये तब यकीन होता है
जब जवाबजोरी में चोरी की शायरी दिए फिरते हैं

मगर गुरुर ए रंजिश नहीं फक्र है शायर
हमारी सोहबत में सब शायर हुए फिरते हैं

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