कुशल कूटनीति का दौर था
प्रयासों में निकाल रहे थे वो मीन-मेख
कोख में लिए तुझे पर अग्रसर थी
जटिल परिस्थिति तू परस्पर पेख
प्रतीक्षा थी तुम्हारी सभी को
हो रही थी पूरी देख-रेख
कह रहे थे अदभूत ही होगा अवशय
माँ में भर दी है कितनी ऊर्जा देख
ज्ञात होगा शीघ्र ही तुझे
तू किस लिपी का है लेख
अंकित हुआ है इस धरा पे
तू आदय का ही सुलेख
रगों में तेरे शौर्य है
तुझमे हिमालय का है उल्लेख
दो कुलों का मेल कराता
तू प्रेम का है भूलेख
प्रत्याशाओं का बोझ नहीं तुझको
बस ज्ञान बना तू अपना नेख
नित्य विजय बाध्य नहीं
सद्कर्म कर जीवन का आनन्द देख।
ये वीर रस से ओत प्रोत काव्य लिखने के लिए मैं आपकी भूरि भूरि प्रशंसा करती हूँ. लिपिका के पुत्र का ऐसे ही यशगान होता रहे येही मेरी कामना है.
ReplyDeleteहरीश बहुत अच्छा लिखा है
ReplyDeleteBahut umda!! जब जय बढ़ा हो कर पढ़ेगा, बहुत गर्व होगा उसे... खुद पे, माता पिता पे, और आपकी कला पे।
ReplyDeleteहरीश जी शब्द कम पड़ेंगे धन्यवाद करने के लिए। मैंने इसे फ्रेम करने के लिए भिजवाया है।
ReplyDeleteअहोभाग्य, किसी बड़े कवी जैसी feeling आ रही है
ReplyDeleteअहोभाग्य, किसी बड़े कवी जैसी feeling आ रही है
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