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Thursday, 8 September 2016

लिपिका के नवजात पुत्र के लिए


कुशल कूटनीति का दौर था 
प्रयासों में निकाल रहे थे वो मीन-मेख 
कोख में लिए तुझे पर अग्रसर थी 
जटिल परिस्थिति तू परस्पर पेख 

प्रतीक्षा थी तुम्हारी सभी को 
हो रही थी पूरी देख-रेख 
कह रहे थे अदभूत ही होगा अवशय 
माँ में भर दी है कितनी ऊर्जा देख 

ज्ञात होगा शीघ्र ही तुझे 
तू किस लिपी का है लेख 
अंकित हुआ है इस धरा पे 
तू आदय का ही सुलेख 

रगों में तेरे शौर्य है 
तुझमे हिमालय का है उल्लेख 
दो कुलों का मेल कराता 
तू प्रेम का है भूलेख 

प्रत्याशाओं का बोझ नहीं तुझको 
बस ज्ञान बना तू अपना नेख 
नित्य विजय बाध्य नहीं 
सद्कर्म कर जीवन का आनन्द देख। 





6 comments:

  1. ये वीर रस से ओत प्रोत काव्य लिखने के लिए मैं आपकी भूरि भूरि प्रशंसा करती हूँ. लिपिका के पुत्र का ऐसे ही यशगान होता रहे येही मेरी कामना है.

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  2. हरीश बहुत अच्छा लिखा है

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  3. Bahut umda!! जब जय बढ़ा हो कर पढ़ेगा, बहुत गर्व होगा उसे... खुद पे, माता पिता पे, और आपकी कला पे।

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  4. हरीश जी शब्द कम पड़ेंगे धन्यवाद करने के लिए। मैंने इसे फ्रेम करने के लिए भिजवाया है।

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  5. अहोभाग्य, किसी बड़े कवी जैसी feeling आ रही है

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  6. अहोभाग्य, किसी बड़े कवी जैसी feeling आ रही है

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