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Tuesday, 6 December 2016

अगर तुम होती

हर चेहरे में ढूँढता हूँ चेहरा तेरा,
हर शख्स में तेरा अक्श ढूंढता हूँ
तेरे सलीके से बंधे बाल, तेरी बोलती आंखे, तेरे तीखे से नाक नक्श ढूंढता हूँ पर
क्या जानती हो तुम की अगर तुम होती तो ये ना होता।

मन की गहराईयों से निकल आती हैं यादें तेरी
अतीत की उन गलियों से जब भी गुजरता हूँ
आज भी अपने आप को कभी कभी दूर रूका हुआ तेरा इंतजार करता पाता हूँ पर
क्या जानती हो तुम की अगर तुम होती तो ये ना होता।

कभी एकेले में बैठ अपनी हिम्मत को दाद दे, अपनी ही पीठ थपथपा देता हूँ
वो बहाने बना बना तेरे घर आना, तेरे बाप भाई से झूठे ही दोस्ती बढाना
आज भी यादों के सहारे कभी कभी तेरे घर घुम आता हूँ पर
क्या जानती हो तुम की अगर तुम होती तो ये ना होता।

हजारों सपने टूट कर बिखर जाते हैं एक बार फिर
जब अतीत से निकल वर्तमान में झांकती हो तुम
बिखरे सपने सिमेटते हुए बस यही सोचता हूँ
क्या जानती हो तुम की अगर तुम होती तो ये ना होता।

2 comments:

  1. कभी मिले तो सपनो को उन पलों में संजोके कह देना की तुम होती तो यूँ होता तुम होती तो यूँ होता

    विरह रस से ओत प्रोत। एकदम झक्कास :☺

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  2. कभी मिले तो सपनो को उन पलों में संजोके कह देना की तुम होती तो यूँ होता तुम होती तो यूँ होता

    विरह रस से ओत प्रोत। एकदम झक्कास :☺

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