Writer

Writer

Sunday, 13 November 2016

कैशलेस हम कैशलेस तुम

वो दिन जब 4 दोस्त एक प्लेट का पैसा देते थे
सिगरेट का कश भी बाँट बाँट के लेते थे

दस रुपये पर हॉस्टल का कमरा अखाड़ा बनता था
कैंटीन की उधारी पर पूरा महीना चलता था

डेट पे जाने का मतलब दोस्तों पे उधारी थी
कभी सिर्फ कॉफ़ी तो कभी चाय भी भारी थी

फिर भी दिल में करीबी थी
दोस्त के लिए हर वक़्त अमीरी थी

कमी में भी मन में एक सुकून सा था
दिलों में रवानी जिगर में खून सा था

आज फिर कुछ वैसा समां आया है
जेब में नोट हैं मगर गरीबी का साया है

फिर भी दिल में सुकून सा है
फिर कॉलेज का जुनून सा है

मस्ती मज़ाक लौट आया है पैसे पर
मुफ्त लिखा ज़्यादा जचता है सैशे पर

कॉलेज की सी ज़िन्दगी फिर मिली है बटोर लो
इस जीवन से ये कुछ पल तोड़ लो

एक सिगरेट फिर से बाँट के देखो यारों
एक मैग्गी की प्लेट साथ सपोड़ लो

9 comments:

  1. हाय रे... Lipika... Just loved it. How amazingly you have conveyed a big message. Specially specially for people who are complaining and cribbing for being short on cash.

    Loved the positivity in your thoughts.

    Hats off!! 👐

    ReplyDelete
  2. Reminded of the olden n golden era.


    Deja vu feeling .....

    Loved ....sapod lo

    ReplyDelete
    Replies
    1. :D I'm glad I could take you back in college days

      Delete
  3. Great lines.....Feeling nostalgic :)

    ReplyDelete
    Replies
    1. Thanks Charu. I too feel the same every time I read it.

      Delete
  4. Great lines.....Feeling nostalgic :)

    ReplyDelete
  5. फिर से बेफ़िक्री और मस्ती का आलम छा गया,
    लिपिका!तुम्हारी कविता पढ़ कर मज़ा आ गया.

    ReplyDelete
    Replies
    1. हाहाहाहा धन्यवाद

      Delete
    2. हाहाहाहा धन्यवाद

      Delete