शतरंज की बिसात
चलो आज मिलकर, शतरंज की एक नयी बिसात बिछाये।
फ़ेज़ेज़ - फ़ेज़ेज़ बहुत खेल लिया, अब जाती का खेल रचाए।
कोई फेंके पासे, तो कोई बना है ख़ुद मोहरा।
कौन जीतेगा इस जंग में, कौन खाएगा ज़ख़्म गहरा।
बिल्डर, सिक्युरिटी, और पार्किंग, यह सब बातें है चार दिन की।
समस्याओं को और उलझाने का यह राज है बड़ा ही गहरा।
देखना है इस दिसम्बर ऊँट किस करवट बैठेगा।
कितना साफ़ करे कोई, दागो से भरा है हर चहेरा।
आरोप - प्रत्यारोप इस माह और बढ़ जाएँगे।
जो ना मिले थे कभी, वो सब साथ में नज़र आएँगे।
दुश्मन बनेंगे दोस्त, दोस्त दुश्मन बन जाएँगे।
जान लो समझ लो, अभी से लगा लो अपने पर पहरा।
यह शतरंज का खेल बहुत है गहरा, यह खेल बहुत है गहरा।
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