आज जो बचपन से जवानी आयी है
यूँ चाँद सी शख्सियत संवर आयी है
छुटपन की दोस्ती नया मकाम लायी है
आज भाई ने 40 पार लगाई है
झगड़ो में मिठास तब भी थी अब भी है
ज़िद का मिजाज़ तब भी थी अब भी है
वो बचपन की आदत नया रंग लायी है
आज भाई ने 40 पार लगाई है
वो अलट पलट के मुह फुलाना
सीक्रेट चुटकुलों पर जम के ठहाके लगाना
हर मौके पर तेरी मुस्कराहट साथ पायी है
आज भाई ने 40 पार लगाई है
अगले 40 के मोड़ पर जब मुलाकात होगी
तेरे मेरे एक नए सफर की शुरुआत होगी
तब भी तेरी स्वेटर आएगी शायद पैंट छोटी पड़े
तब भी तेरा गुस्सा हँसके ही सहना पड़े
इस वाले पर हमने भी जमके लगाई है
आज भाई ने 40 पार लगाई है
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