ढूंढते हैं उसको जिसे कहीं छोड़ आए हैं
वो मुस्कराहट, वो बेबाकपन जो कहीं भूल आए हैं
कई चेहरों का नक़ाब ओढ़े असल से जुदा हो गए
ज़िन्दगी आगे बढ़ गयी हम क्या से क्या हो गए
माथे से लेकर बिस्तर की सिलवटें जो मेरी थीं
वो चैन, वो ठहाके, वो नींदें जो मेरी थीं
कई ख्वाइशों के बोझ के तले रुबा हो गए
ज़िन्दगी आगे बढ़ गयी हम क्या से क्या हो गए
ख्यालों से लेकर हौसलों की तिशनगी थी मेरी
उन्हें पूरा करने न करने की आज़ादी थी मेरी
कई हौसलों के ज़ोर में बेनिशाँ हो गए
ज़िन्दगी आगे बढ़ गयी हम क्या से क्या हो गए
यूँ नहीं के ज़िन्दगी से कोई शिकवा है हमें
इस डोर, इस बंदिश का भी दरकार है हमें
कई आहटों के शोर में बेज़ुबान हो गए
ज़िन्दगी आगे बढ़ गयी हम क्या से क्या हो गए
मन की व्यथा 🤔🤔
ReplyDeleteVery well Expressed 👌🏻 👌🏻
:)धन्यवाद
Deleteबहुत बढ़िया।
ReplyDeleteहम क्या से क्या हो गए...
I think we all can relate to it... सभी का कहीं न कहीं यही हाल है।
धन्यवाद
Deleteयकीन मानिये की ये ख्याल शादी होने के बाद ही आया।
ReplyDeleteवरना हम तो वहीँ थे बस ज़िंदगी आगे बढ़ रही थी।
Agree with Anu jee .....Beautifully penned the feeling of almost every individual
Thanks
DeleteNicely penned, but good that life takes us along.
ReplyDeleteसारे सपने कहीं खो गए, हाय हम क्या से क्या हो गए
सपने तो intact हैं
Deleteउम्दा शायरी का नमूना पेश किया है आपने लिपिका जी!
ReplyDeleteअरे वाह कविता जी बोहोत दिन बाद। Thank you and welcome back
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