आज सुबह ग़लती से जल्दी उठ गयी
लेकिन बहुत जल्दी भी नहीं ...,
पर एक बात है जल्दी उठ कर अच्छा बहुत लगा
हल्की सी सर्दी ,कुनकुनी सी धूप, सरसराती सी हवा
और लहराते हुए पेड़ पोधे....
ये सब तो मेरा दिल ही ले गए
कुछ लमहें, कुछ पल, कुछ ऐसा सा आभास
जैसे ख़ुद को ख़ुद से मिली थी काफ़ी मुद्दत के बाद
ऐसा लगा कि एक पल में कई पल एक साथ जी लिए
क़ुदरत के इस जादू ने तो जैसे मेरा मन ही मोह लिया
ख़ुद से और ज़िंदगी से पहले से ज़्यादा प्यार सा हो गया
ऐसा लगा कुछ खोया सा फिर से पा लिया हो
ऐसा लगा ये अहसास शायद कुछ सीखाने को आया हो
बड़ी बड़ी ख़्वाहिशों की चाहत के चलते
जैसे छोटे छोटे लम्हे नज़रान्दाज से हो गए हो
बड़े बड़े सपनों कि चकाचौंध के चलते
जैसे ये लम्हे धुँधला से गए हो
आज ख़ुद से मिल कर और इन लम्हों को फिर से जी कर
बरसो पुरानी धूल आज इन लम्हों से झड़ गयी सी लगती है
ज़िंदगी अब तो फिर से नयी नयी सी लगती है
अब तो हर लम्हा इबादत सा लगने लगा है
ज़िंदगी तुझ से और ज़्यादा प्यार होने सा लगा है
Anuyog
Got up early this morning by mistake at 6 am and your poem is here to remind me the benefits .
ReplyDeleteGood one.
😊😊
DeleteThanks 🙏🏻🙏🏻