जब पास नहीं तुम होते हो
और मन विचलित हो जाता है
ऐसे में दिल बहलाने को
मैं तुम पर कविता लिखता हूँ।
सूनी डगर पर, सूने सफर पर
एकांत में कभी, जब शून्य हो जाता हूँ
हज़ारों की भीड़ में, शहर की रफ़्तार में
किसी मुड़े मोड़ पर, जब थक सा जाता हूँ
तुम्हारा साथ ऐसे में पाने को
मैं तुम पर कविता लिखता हूँ।
नवजात की किलकारियों पे,यौवन की मुस्कान पे
बूढ़ी दादी पे कभी, जब मोहित हो जाता हूँ
सावन की फुहार में, फागुन की साँझ में
देवदार की सुगंध में, जब सम्मोहित हो जाता हूँ
उस भाव को तुमसे बाँटने को प्रिये
मैं तुम पर कविता लिखता हूँ।
मैं तुम पर कविता लिखता हूँ
क्यों तुम पर कविता लिखता हूँ ?
प्रभाव से, कदाचित स्वाभाव से
लिख जाता है या लिखता हूँ ?
अनजान बन पहेली सुलझाने को
मैं फिर तुम पर कविता लिखता हूँ।
और मन विचलित हो जाता है
ऐसे में दिल बहलाने को
मैं तुम पर कविता लिखता हूँ।
सूनी डगर पर, सूने सफर पर
एकांत में कभी, जब शून्य हो जाता हूँ
हज़ारों की भीड़ में, शहर की रफ़्तार में
किसी मुड़े मोड़ पर, जब थक सा जाता हूँ
तुम्हारा साथ ऐसे में पाने को
मैं तुम पर कविता लिखता हूँ।
नवजात की किलकारियों पे,यौवन की मुस्कान पे
बूढ़ी दादी पे कभी, जब मोहित हो जाता हूँ
सावन की फुहार में, फागुन की साँझ में
देवदार की सुगंध में, जब सम्मोहित हो जाता हूँ
उस भाव को तुमसे बाँटने को प्रिये
मैं तुम पर कविता लिखता हूँ।
मैं तुम पर कविता लिखता हूँ
क्यों तुम पर कविता लिखता हूँ ?
प्रभाव से, कदाचित स्वाभाव से
लिख जाता है या लिखता हूँ ?
अनजान बन पहेली सुलझाने को
मैं फिर तुम पर कविता लिखता हूँ।
Apratim :)
ReplyDeleteअद्भुत कृति हरीश जी!
ReplyDeleteThanks..........
ReplyDeleteVery nice..:)
ReplyDeleteMujhe bhi likhna sikha do.....sunder bhavo se bhari KAVITA.😊
ReplyDeleteMujhe bhi likhna sikha do.....sunder bhavo se bhari KAVITA.😊
ReplyDelete