उस सफर में चले साथ, के मुकाम एक था
एक अनजान से एक ख़ास पहचान बन गयी
वो कुल्हड़ की चाय में दिल की गहराई घोलते गए
राहें बंधती गयीं, किस्से बनते गए
हर स्टेशन के साथ बातों की तह खुलती गयी
जो किसी से न कही थी वो भी कही गयी
फिर मिलने का वादा करके उठ के चल दिए
घर की राह में उस मुलाकात का एहसास लिए
इक भीनी सी मुस्कुराहट चेहरे पे छा गयी
के ये अधूरी मुलाक़ात मन हल्का कर गयी
जानते थे के फिर मिलने का वादा झूठा था
पर मुलाक़ात ज़रूरी थी तरो ताज़ा करने को
कुछ कही कुछ अनकही सुनने सुनाने को
अधूरी मुलाक़ात अच्छी है दिल खोल दिखाने को
Very nice. ..👌👌
ReplyDeleteधन्यवाद
DeleteVery nice. ..👌👌
ReplyDeleteछोटे सफर की लंबी कहानी।
ReplyDeleteबहुत खूब
धन्यवाद
Deleteछोटे सफर की लंबी कहानी।
ReplyDeleteबहुत खूब
बहुत खूब बयां किया है...रेल के सफ़र में अनजानों से अधूरी मुलालतों में चाय के साथ दिल की बातें कह जाना...
ReplyDeleteधन्यवाद। हम सबने कभी न कभी ये महसूस किया है
Deleteदिल को छू गयी आपकी कविता।
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ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है लिपिका जी। एक अधूरी मुलाक़ात। कुछ यादें ताज़ा कर दीं आपने।
ReplyDeleteआप भी लिख ही डालिये उन यादों पर कुछ :)
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ReplyDeleteयाद नहीं कितनों से कितनी ही मुलाकातें हुईं,
भूल सा गया जिनसे रह रह कर बहुत सी बातें हुई,
अपनी यादों के बस्ता जब टटोल कर देखा,
वही मिले जिनसे बातें और मुलाकातें बस आधी हुईं।
बोहोत खूब। यादों का बस्ता टटोला। वाह
Deleteदिल को छू गयी आपकी कविता।
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