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Wednesday, 14 September 2016

एक अधूरी मुलाकात

उस सफर में चले साथ, के मुकाम एक था
एक अनजान से एक ख़ास पहचान बन गयी

वो कुल्हड़ की चाय में दिल की गहराई घोलते गए
राहें बंधती गयीं, किस्से बनते गए

हर स्टेशन के साथ बातों की तह खुलती गयी
जो किसी से न कही थी वो भी कही गयी

फिर मिलने का वादा करके उठ के चल दिए
घर की राह में उस मुलाकात का एहसास लिए

इक भीनी सी मुस्कुराहट चेहरे पे छा गयी
के ये अधूरी मुलाक़ात मन हल्का कर गयी

जानते थे के फिर मिलने का वादा झूठा था
पर मुलाक़ात ज़रूरी थी तरो ताज़ा करने को

कुछ कही कुछ अनकही सुनने सुनाने को
अधूरी मुलाक़ात अच्छी है दिल खोल दिखाने को

15 comments:

  1. छोटे सफर की लंबी कहानी।
    बहुत खूब

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  2. छोटे सफर की लंबी कहानी।
    बहुत खूब

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  3. बहुत खूब बयां किया है...रेल के सफ़र में अनजानों से अधूरी मुलालतों में चाय के साथ दिल की बातें कह जाना...

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    1. धन्यवाद। हम सबने कभी न कभी ये महसूस किया है

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  4. दिल को छू गयी आपकी कविता।

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  6. बहुत अच्छा लिखा है लिपिका जी। एक अधूरी मुलाक़ात। कुछ यादें ताज़ा कर दीं आपने।

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    1. आप भी लिख ही डालिये उन यादों पर कुछ :)

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  7. याद नहीं कितनों से कितनी ही मुलाकातें हुईं,
    भूल सा गया जिनसे रह रह कर बहुत सी बातें हुई,
    अपनी यादों के बस्ता जब टटोल कर देखा,
    वही मिले जिनसे बातें और मुलाकातें बस आधी हुईं।

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    1. बोहोत खूब। यादों का बस्ता टटोला। वाह

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  8. दिल को छू गयी आपकी कविता।

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