वो दिन जब 4 दोस्त एक प्लेट का पैसा देते थे
सिगरेट का कश भी बाँट बाँट के लेते थे
दस रुपये पर हॉस्टल का कमरा अखाड़ा बनता था
कैंटीन की उधारी पर पूरा महीना चलता था
डेट पे जाने का मतलब दोस्तों पे उधारी थी
कभी सिर्फ कॉफ़ी तो कभी चाय भी भारी थी
फिर भी दिल में करीबी थी
दोस्त के लिए हर वक़्त अमीरी थी
कमी में भी मन में एक सुकून सा था
दिलों में रवानी जिगर में खून सा था
आज फिर कुछ वैसा समां आया है
जेब में नोट हैं मगर गरीबी का साया है
फिर भी दिल में सुकून सा है
फिर कॉलेज का जुनून सा है
मस्ती मज़ाक लौट आया है पैसे पर
मुफ्त लिखा ज़्यादा जचता है सैशे पर
कॉलेज की सी ज़िन्दगी फिर मिली है बटोर लो
इस जीवन से ये कुछ पल तोड़ लो
एक सिगरेट फिर से बाँट के देखो यारों
एक मैग्गी की प्लेट साथ सपोड़ लो