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Sunday, 30 October 2016
Thursday, 27 October 2016
दिवाली
दिवाली
हर दिवाली, पापा तुम बहुत याद आते हो।
जलाता हूँ दीपक, सजाता हूँ फूलों वाली माला।
माला के हर फूल में, दिये की हर जोत में।
मुझे तुम - सिर्फ़ तुम नज़र आते हो।
यूँ फूलों को पिरोकर माला बनाना, तुमसे ही तो सीखा
है।
लम्बे से डंडे में मोमबत्ती बाँधकर अनार जलाना,
तुमसे ही तो सीखा है।
मंदिर में सजे पीतल के बर्तनों को चमकाना, तुमसे
ही तो सीखा है।
आज अपने बच्चों संग फिर दिवाली मनाऊँगा।
खील और खिलौनों से घर के मंदिर को सजाऊँगा।
सब साथ है मेरे, बस अब तुम ही नज़र नहीं आते।
साल के ३६५ दिन मुझे तो बस तुम ही हो याद आते।
एक दिन के लिए ही सही, मेरे पास तो आ जाओ।
दूर से ही सही।
इन उलझी हुई मालाओं की गुत्थी तो सुलझा जाओ।
बहुत इच्छा है एक और दिवाली तुम्हारे साथ मनाने
की।
मेरे इन ख़ाली दियों में, कभी तो तेल भर जाओ।
बहुत याद आते हो पापा।
एक दिवाली फिर से हमारे साथ मना जाओ। बहुत जोर से चुभता है।
सुबह की सैर पर, पड़ोस के पार्क में जो गाड़ी ले कर जाते हैं।
बहुत जोर से चुभता है जब वो प्रदूषण पर चिंता जताते हैं॥
BONFIRE के नाम पर जब वो, जंगल काट जलाते हैं।
बहुत जोर से चुभता है जब वो प्रदूषण पर चिंता जताते हैं॥
ब़च्चों का जन्मदिन हो, या शादी की सालगिरह अपने घर के आंगन में BAR BE QUE कह कर वो कोयला खूब जलाते हैं
बहुत जोर से चुभता है जब वो प्रदूषण पर चिंता जताते हैं॥
अपनी सुविधा की खातिर, हर नियम कानून रख ताक पर।
घर में अपने चौबीस घंटे वो चार चार AC चलाते हैं॥
बहुत जोर से चुभता है जब वो प्रदूषण पर चिंता जताते हैं॥
एे मेेरे देेश के ज्ञानचंदो, म़ाफ करो, न इतना ज्ञान बघारो तुम।
जग भला व सुधरा दिखेगा तुमको, पर पहले अपनी आदते सुधारो तुम॥
हेम शर्मा
Tuesday, 25 October 2016
इक आवाज़
इक आवाज़
ढूंढता रहता हूँ इक आवाज़ को
कभी शब्दों में
तो कभी तस्वीरो में
जिसकी कसक से दिल मचला था
चहेरे बहुत है यहां भीड़ में
मगर उस सा कोई नहीं
इसी कश्मकश में कर ली
बहुत सी बातें उससे
लिख - लिख कर
शब्दों के गिरेबान में भी झाँक आये हम
मगर जो बात उस आवाज़ में थीं
वो शब्दो में नहीं
शायद कुछ
आवाज़ों के चहेरे नहीं होते
यही सोचकर तस्वीरों को पड़ना चाहा
कोशिश बहुत की उन्हें सुनने की
मगर जो बात उस आवाज़ में थीं
वो तस्वीर में भी नहींआओ मेरे साथ चलो
आओ मेरे साथ चलो
चल निकला आज फिर एक सफ़र पर।
कुछ सीखने, और कुछ सीखाने।
आने वाले भविष्य को सुंदर बनाने।
जो कुछ है मेरे पास, कहीं वो व्यर्थ ना हो जाएँ।
जितना समय लगा मुझे यह सब सीखने में।
किसी और का ना लग जाएँ।
अगली पीड़ी का भविष्य उज्जवल हो।
यह मेरी भी तो ज़िम्मेवारी है।
मुझे मेरे बड़ों ने सिखाया, अब मेरी बारी है।
आओं मेरे साथ चलो।
मेरे हाथ से हाथ मिलाओ ना।
इतना ज्ञान लेकर कहाँ जाओगे।
कुछ मेरे साथ बाँट आओ ना।
ज्ञान बाँटने से बड़ता है, यह बात तुम ना जाना भूल।
कुछ सिखाओं और कुछ, ख़ुद भी सीख कर आओ ना।
इतना ज्ञान लेकर कहाँ जाओगे।
कुछ मेरे साथ बाँट आओ ना। हम - तुम
हम - तुम
लगता है कल ही मिले थे हम-तुम।
कितनी जल्दी बीत गए।
ये
बाईस बरस।
बस
यूँ हीं पल भर में।।
यह
प्यार का अहसास था।
या
मुझ पर तुम्हारा विश्वास।
जो
अपना सब कुछ छोड़-छाड़कर।
चलीं आयीं थीं तुम इस घर में।।
आज
मैं जो कुछ भी हूँ।
मेरी हर सफलता का राज़ हो तुम।
तुम
बिन कुछ भी हासिल ना हो पाता।
शक्ल हूँ मैं, पर मेरी आवाज़ हो तुम।
अब
मैं - मैं ना रहा, तुम - तुम ना रहे।
दो
जिस्म एक जान है हम-तुम।।
तन
सौंप दिया, मन सौंप दिया।
एक
दूजे बिन अधूरे है।
एक
दिल के दो अरमान है हम-तुम।।
मेरी हर सोच को, एक नई दिशा दी।
हर
मोड़ पर मेरा साथ दिया तुमने।
मेरे हर फ़ैसले पर मुहर लगाकर।
कठिन समय में अपना हाथ दिया तुमने।।
जब-जब दुखों के बादल आए।
मेरे पास खड़ी थीं तुम।
जीवन की हर मुश्किल आसाँ कर।
अपनेपन का अहसास दिया तुमने।।
यूँ
तो बहुत उठते होंगे सवाल मन में।
पर
मुझे कभी ना परेशाँ किया।
सब
मुश्किल अपने पर लेकर।
अपनी ख़ुशीयों का बलिदान किया तुमने।।
अब
तो बस यही तमन्ना है।
ज़िंदगी की हर शाम गुज़रे तेरी बाहों में।
काँटे सब चुन चुकाँ अजय।
फूल
ही फूल रहें तेरी राहों में।।
जो
छूट गया है जीवन में।
उसको भी मिलकर पा लेंगे।
गर
फिर जन्म मिला हमको मनीषा।
तो
फिर से तुझको अपना लेंगे।
तो
फिर से तुझको अपना बना लेंगे।।Tuesday, 18 October 2016
यादों के पन्ने
यादों के पन्ने
दिल टूटने का मंज़र सभी को याद है।
मिलते थे हम जब तन्हाई में।
किसी को दिखता ना था।
आज तेरी रूसवाई की चर्चा।
पूरे शहर में है।
प्यार में तूने दिए जो ज़ख़्म।
दिखाऊँ कैसे।
मिलते थे हम जब तन्हाई में।
किसी को दिखता ना था।
आज तेरी रूसवाई की चर्चा।
पूरे शहर में है।
प्यार में तूने दिए जो ज़ख़्म।
दिखाऊँ कैसे।
पूछता है हर कोई उन गलियों का पता।
मिल जाते हो आज भी जहाँ।
तुम अक्सर।
बहुत सी यादें बसतीं है।
आज भी उन गुमनाम गलियों में।
उन यादों को सबकी नज़रों से।
छिपाऊँ कैसे।
मिल जाते हो आज भी जहाँ।
तुम अक्सर।
बहुत सी यादें बसतीं है।
आज भी उन गुमनाम गलियों में।
उन यादों को सबकी नज़रों से।
छिपाऊँ कैसे।
संभाल कर रक्खे है यादों के सभी फूल।
भेजे थे तूने मुझको।
जो कभी फ़ुर्सत में।
पलटेगा मेरी यादों के पन्ने गर कोई।
सूखें हुए फूलों की वो पंखुडिया नज़र आएँगी।
बेवजह नाम तेरा निकलेगा।
बात बिना बात के बड़ी दूर तलक जाएगी।
यादों के पन्नों से उन्हें अब।
हटाऊँ कैसे।
भेजे थे तूने मुझको।
जो कभी फ़ुर्सत में।
पलटेगा मेरी यादों के पन्ने गर कोई।
सूखें हुए फूलों की वो पंखुडिया नज़र आएँगी।
बेवजह नाम तेरा निकलेगा।
बात बिना बात के बड़ी दूर तलक जाएगी।
यादों के पन्नों से उन्हें अब।
हटाऊँ कैसे।
दिल में थी जो बात।
दबा रक्खी है अब तक होंटो पे।
पूछते है सब मेरी बेवसी का सबब।
छुपी है बात जो।
कई बरसों से।
उसको अब होंटो तलक।
लाऊँ कैसे।
दबा रक्खी है अब तक होंटो पे।
पूछते है सब मेरी बेवसी का सबब।
छुपी है बात जो।
कई बरसों से।
उसको अब होंटो तलक।
लाऊँ कैसे।
कहते है लोग।
तू कबका मुझको भूल गया।
बहुत चाहा मैंने भी भूलना तुझको।
तेरे जैसा हुनर मुझको भो कोई सिखलादें।
ये अपनों को भुलाने का हुनर मैं।
पाऊँ कैसे।
प्यार में तूने दिए जो ज़ख़्म।
दिखाऊँ कैसे।
तू कबका मुझको भूल गया।
बहुत चाहा मैंने भी भूलना तुझको।
तेरे जैसा हुनर मुझको भो कोई सिखलादें।
ये अपनों को भुलाने का हुनर मैं।
पाऊँ कैसे।
प्यार में तूने दिए जो ज़ख़्म।
दिखाऊँ कैसे।
Thursday, 13 October 2016
सरहद पर दिवाली
सरहद पर दिवाली
याद बहुत आती है मुझको वह सुंदर पंक्ति दीयों वाली।
जगमग करते गली चौबारे जगमगाते आंगन उपवन ।
सजी हुई पूजा की थाली, आनन्दित हर मन चितवन ॥
सजे हुए मेरे बंधु बांधव वह हर्षोल्लास की दीवाली।
याद बहुत आती है मुझको वह सुंदर पंक्ति दीयों वाली ॥
सरहद पर हूं खडा सोचता, इस बार तो घर को जाऊँ मैं ।
फिर वही पहले की भांति उन्मुक्त हो दीप जलाऊँ मै ॥
स्वछंद उडूँ उस नील गगन में, शाख शाख पर जाऊँ मैं ।
घर घर जा शुभकामनाएँ दूँ और शुभकामनाएँ पाऊँ मैं ॥
भूलाए नही भूलती मुझको जगमग रात मोतियों वाली ।
याद बहुत आती है मुझको वह सुंदर पंक्ति दीयों वाली ॥
पर दूसरे ही पल खडे सरहद पर फ़र्ज याद आता है मुझको, और याद आती है वह शपथ देश पर मरने वाली ।
ख़ुब जगमग करो रोशनी, धूमधाम से मनाओ दिवाली,
जब तक हूँ मैं खड़ा सरहद पे न पडने दूँगा छाया काली ॥
बस इतना कर देना मेरे मित्रों, कुछ दिए भेज देना सरहद पर लगा बाती प्रेम वाली । क्योंकि
याद बहुत आती है मुझको वह सुंदर पंक्ति दीयों वाली ॥
हेम शर्मा
याद बहुत आती है मुझको वह सुंदर पंक्ति दीयों वाली।
जगमग करते गली चौबारे जगमगाते आंगन उपवन ।
सजी हुई पूजा की थाली, आनन्दित हर मन चितवन ॥
सजे हुए मेरे बंधु बांधव वह हर्षोल्लास की दीवाली।
याद बहुत आती है मुझको वह सुंदर पंक्ति दीयों वाली ॥
सरहद पर हूं खडा सोचता, इस बार तो घर को जाऊँ मैं ।
फिर वही पहले की भांति उन्मुक्त हो दीप जलाऊँ मै ॥
स्वछंद उडूँ उस नील गगन में, शाख शाख पर जाऊँ मैं ।
घर घर जा शुभकामनाएँ दूँ और शुभकामनाएँ पाऊँ मैं ॥
भूलाए नही भूलती मुझको जगमग रात मोतियों वाली ।
याद बहुत आती है मुझको वह सुंदर पंक्ति दीयों वाली ॥
पर दूसरे ही पल खडे सरहद पर फ़र्ज याद आता है मुझको, और याद आती है वह शपथ देश पर मरने वाली ।
ख़ुब जगमग करो रोशनी, धूमधाम से मनाओ दिवाली,
जब तक हूँ मैं खड़ा सरहद पे न पडने दूँगा छाया काली ॥
बस इतना कर देना मेरे मित्रों, कुछ दिए भेज देना सरहद पर लगा बाती प्रेम वाली । क्योंकि
याद बहुत आती है मुझको वह सुंदर पंक्ति दीयों वाली ॥
हेम शर्मा
Wednesday, 12 October 2016
ऐ अजनबी
ऐ अजनबी
जाने पहचाने चेहरों के बीच।
कुछ अजनबी मिलें।
कुछ नयों से पहचान हुई।
कुछ पहचाने अजनबी हो गए।।
जीवन की उलझतीं राहों में।
कई मिले थे हमदम।
चार क़दम साथ चलकर।
कुछ बेगाने हो गए।।
यह सिलसिला यूँ हीं चलता रहेगा।
ज़िंदगी भर शायद ...
जो साथ है वो याद है।
जो छूट गए वो अफ़साने हो गए।।
यादें भी बड़ी बेरहम सी हो गयी है।
आजकल ....
जिनका ज़िक्र होता था मेरे हर गीत के मुखड़े में।
आज वो किसी और के गीतों के तराने हो गए।।
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