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Friday, 7 October 2016

ख़ामोश मोहब्बत

ख़ामोश मोहब्बत
शब्द तो थे मगर सन्नाटा सा था।
हर तरफ़ ख़ामोशी सी छायीं थीं।
आँखों ही आँखों में हो रही थीं बातें।
महफ़िल में वोहि बस अपनी थी।
बाक़ी सब पराईं थीं।

कभी आँखों की शोख़ी से। 
कभी चहेरे की अदाओं से। 
मोहब्बतें इज़हार होता रहा।
ख़ामोश रहे लब। 
मगर नज़रों से इकरार होता रहा। 

कुछ तो थी, कुछ बात तो थी।
यूँ ही कोई हम-नज़र नहीं होता। 
कुछ क़सूर तो होगा निगाहों का। 
ऐसे ही कोई किसी का दीवाना नहीं होता। 
शायद.....
उसे भी मेरी याद आती तो होगी।
पलकें बिछा के बैठा था महफ़िल में।
इस फ़िराक़ में अजय कि।
किसी  किसी मोड़ पर मुलाक़ात तो होगी।

ना जाने कब उससे बात होगी।
ना जाने कब मुलाक़ात होगी।
बड़ी मुद्दत के आज बाद वो रात आयी थी। 
वो थे, मैं था, और मेरी तन्हाई थी।
क्या कहूँगा उसको। 
यह तय नहीं कर पाया था। 
आज तो बाहों में भर ही लूँगा। 
यह सोचकर महफ़िल में कई बार उससे टकराया था।

सोचा था ख़ामोश मोहब्बत को। 
आज एक नाम दे दूँगा। 
अपनी इस मोहब्बत को।
प्यारा सा अंजाम दे दूँगा। 

जाना चाहता था पास उसके  
मगर जा नहीं पाया 
अपने जज़्बातों को मगर। 
क़ाबू में रख नहीं पाया।
आँसू को बहुत समझाया था। 
तन्हाई में आया करो। 
महफ़िल में सरेआम यू हमें। 
रुसवा  कराया करो।
मेरे आँसू शायद मुझे तन्हा देख ना पायें। 
मुझे अकेला देख महफ़िल में। 
साथ निभाने को निकल आएँ। 

लगता था रात ऐसे ही बीत जाएगी। 
मिलने की ख़्वाहिश दिल में ही रह जाएगी। 
उसके शहर, उसकी सोच से निकलना होगा।
फिर किसी उदास शाम में ढलना होगा। 
यहीं सोचकर मैं महफ़िल से उठ आया था। 
मैं था, और मेरे साथ मेरा साया था। 

तभी उसके बदन की खुशबू का अहसास हुआ। 
वो मेरे पास और मैं उसके पास हुआ। 
सामने वो थी, फिर भी कुछ कह ना पाया था।
इकरारे मुहब्बत को बयाँ कर ना पाया था।
सूख गए थे लब। 
लफ़्ज़ निकल ना पाए। 
हो ना पाया था इश्क़ बयाँ। 
जब वो इतना क़रीब आए। 

ख़ामोश रात के पहलू में सितारे देखें। 
उसकी आँखों में रंगीन नज़ारे देखें।
जु़बाँ ख़ामोश रही नज़रों ने मगर काम किया। 
प्यार से हमने उसका दामन थाम लिया।
ख़ामोश प्यार को इक नाम दे डाला। 
अपनी मोहब्बत को इक प्यारा सा अंजाम दे डाला।
साथ-साथ अब हम बहुत दूर निकल आएँ है।
जीवन की डोर अब उसी की गिरफ़्त में है। 
कई पल कई लम्हें साथ-साथ गुज़ार डाले अब तो। 
सपनों का महल उसी दरख्त में है।

1 comment:

  1. वाह क्या खूब लिखा है खामोश मुहब्बत पर!

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