इक आवाज़
ढूंढता रहता हूँ इक आवाज़ को
कभी शब्दों में
तो कभी तस्वीरो में
जिसकी कसक से दिल मचला था
चहेरे बहुत है यहां भीड़ में
मगर उस सा कोई नहीं
इसी कश्मकश में कर ली
बहुत सी बातें उससे
लिख - लिख कर
शब्दों के गिरेबान में भी झाँक आये हम
मगर जो बात उस आवाज़ में थीं
वो शब्दो में नहीं
शायद कुछ
आवाज़ों के चहेरे नहीं होते
यही सोचकर तस्वीरों को पड़ना चाहा
कोशिश बहुत की उन्हें सुनने की
मगर जो बात उस आवाज़ में थीं
वो तस्वीर में भी नहीं
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