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Thursday, 27 October 2016

दिवाली

दिवाली
हर दिवाली, पापा तुम बहुत याद आते हो।
जलाता हूँ दीपक, सजाता हूँ फूलों वाली माला।
माला के हर फूल में, दिये की हर जोत में।
मुझे तुम - सिर्फ़ तुम नज़र आते हो।

यूँ फूलों को पिरोकर माला बनाना, तुमसे ही तो सीखा है।
लम्बे से डंडे में मोमबत्ती बाँधकर अनार जलाना, तुमसे ही तो सीखा है।
मंदिर में सजे पीतल के बर्तनों को चमकाना, तुमसे ही तो सीखा है।

आज अपने बच्चों संग फिर दिवाली मनाऊँगा।
खील और खिलौनों से घर के मंदिर को सजाऊँगा।
सब साथ है मेरे, बस अब तुम ही नज़र नहीं आते।
साल के ३६५ दिन मुझे तो बस तुम ही हो याद आते।

एक दिन के लिए ही सही, मेरे पास तो आ जाओ।
दूर से ही सही।
इन उलझी हुई मालाओं की गुत्थी तो सुलझा जाओ।
बहुत इच्छा है एक और दिवाली तुम्हारे साथ मनाने की।
मेरे इन ख़ाली दियों में, कभी तो तेल भर जाओ।
बहुत याद आते हो पापा।
एक दिवाली फिर से हमारे साथ मना जाओ। 

1 comment:

  1. आपने मुझे मेरे पिता की वो छोटी छोटी बातें याद दिला दी जो हर त्यौहार को और ख़ास बना देती थीं

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