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Friday, 8 December 2017

असमंजस में हूँ

ज़िंदगी नित नवीन प्रयोग मुझ पर करती है
असमंजस में हूँ, मारना चाहती है या मुझ पर मरती है।

कभी प्रेयसी की भाँति ह्रदयस्पर्सी बातों का रस घोल देती है
कभी अगले ही पल प्रियतमा बन ह्रदयघाती कड़वे सच बोल देती है
ह्रदयस्पर्शी हो या ह्रदयघाती, प्रहार ह्रदय पर ही करती है
असमंजस में हूँ, मारना चाहती है या मुझ पर मरती है।

प्रतीत होता है, मेरे सुखों से कहीं न कहीं यह थोड़ा जलती है
मेरे आनंद के समापन समारोह पूर्व ही दुखों का पहाड़ सिर धरती है
समझ नहीं पाता, तोड़ना चाहती है मुझे या चोट मार प्रखर करती है
असमंजस में हूँ, मारना चाहती है या मुझ पर मरती है।

नित मुझे सताने के नव नूतन यत्न ये करती है,
हठी है बहुत, अस्वीकार दूँ तो अप्रतीरोध्य प्रलोभन समक्ष धरती है
यौवन का प्रलोभन दे बचपन निगल गई
अब बच्चों के उज्जवल भविष्य का लोभ दे
यौवन पर आँख धरती है
असमंजस में हूँ, मारना चाहती है या मुझ पर मरती है।

ज्ञात नहीं भविष्य में, यह क्या क्या स्वप्न दिखाएगी
जाने किस प्रलोभन के बदले, क्या माँग ले जाएगी
जानती नहीं शायद तब तक तो मैं भी परिपक्व हो जाऊँगा,
म्रत्यु अटल है, इस बात से तब मैं भी कहाँ घबराऊँगा
जाने क्यों फिर भी यह अथक निरंतर प्रयास करती है
असमंजस में हूँ, मारना चाहती है या मुझ पर मरती है।

हेम शर्मा

ओ माँ


कई बार लिखना चाहा

पर लिख ना सका। 

तेरी यादों और बातों को

शब्दों में कस ना सका। 

 

लगता है बड़ा हो गया हूँ 

बचपन अपना भूल गया। 

इतना सबकुछ लिख डाला पर 

तुझपर लिखना भूल गया। 

 

रोज़ ख़यालों में आतीं हों 

कस कर गले लगा लो ना। 

तेरा ही तो बच्चा हूँ माँ

लोरी आज सुना दो ना। 

 

जिस उँगली को पकड़कर सीखा

इस जग का इक इक पाठ। 

पढ़ा रहा हूँ सबको वोहि

दो दूनि चार और चार दूनि आठ। 

 

तेरी कही हुई इक इक बात 

आज भी याद आती है। 

फिर भी ग़लती कर देता हूँ

और वो सबक़ बन जाती है। 

 

अपने पोते और पोती को भी

कुछ ऐसा पाठ पढ़ा दो ना।

तेरा ही तो बच्चा हूँ माँ

लोरी आज सुना दो ना।

इक पहाड़ी में मेरा घर


मैं वो ही हूँ

जो सड़क के नीचे वाले

सरकारी स्कूल में पढ़ता था। 

सीमित ही सही

पर साफ़ सुथरे 

कपड़े धारण करता था। 

 

मेरा घर 

उसी सड़क के नीचे पड़ता था। 

शायद मेरे शहर में 

हरेक का स्तर 

सड़क के ऊपर 

या नीचे होना ही तय करता था। 

 

हवा तुम्हारे घर को

और मेरे घर को

बराबर ही मिलती थी। 

पर हाँ सूरज की किरणें

तुम्हारे घर पर 

कुछ ज़्यादा ही गिरती थीं। 

 

सब समय का फेर है 

वो सड़क

आज भी वैसी ही है। 

मेरा घर

आज भी 

उसी सड़क के नीचे ही है।

 

लेकिन आज ...

सब कुछ बदल सा गया है। 

सूरज की किरणें ...

मेरे साथ साथ चलती है। 

हवायें ...

मेरे साथ रूख बदलतीं हैं। 

 

 

अगले जनम में

किसी के साथ

तुम इतना ज़ुल्म ना करना। 

इक सड़क से

किसी की हैशियत

तय ना करना।

 

मैं आज

ना जाने कितनी लम्बी सड़कें बनाता हूँ

नए नए शहरों को

बसाता हूँ।

कुछ घर सड़क के ऊपर और कुछ नीचे

आज भी बनते है। 

वैसी ही पहाड़ी पर

जहाँ कभी एक घर मेरा भी था। 

मौसम बड़ा सुहाना है


आज उसके घर की खिड़की जो खुली

बादलों ने हटा दिया घूँघट

मेरे शहर में आज धूप निकली है

मौसम भी कुछ खिला - खिला सा है

 

ठंडी हवा की लहर उसकी खिड़की से गुजरी होगी

उसके गालों को छूकर निकली होगी

इस सर्द मौसम में

तभी तो फ़िज़ा का रंग गुलाबी सा है

 

हर एक कली खिली - खिली सी है

मौसम बड़ा सुहाना है

ये उसके बदन की खुशबू का असर है

तभी तो फूलों की खुशबू खुशनुमा सी है

 

शाम को चाँद भी उसकी खिड़की में झांकेगा

उसके दीदार की इक झलक पाने के लिए

उस मंजर को देखने की ललक में

रात होने की बड़ी बेबसी सी है 

हार जीत


कभी कभी ....

जीतने के लिए हारना ज़रूरी है। 

परन्तु .....

हर हार से एवं हर जीत से।

एक सबक़ सीखना ज़रूरी है। 

 

जीवन में बहुत मौक़े आएँगे। 

जीतने के ....

असली जीत उस दिन होगी। 

जब हम ख़ुद से जीत जाएँगे।

लेकिन ....

उसके लिए ज़िंदगी जीना ज़रूरी है। 

 

क्यूँ आए थे हम यहाँ जन्म लेकर। 

क्या मक़सद है इस ज़िंदगी का।

क्यूँ हम लड़ते है। 

कभी ख़ुद से, कभी अपनों से। 

इन सवालों के जवाब पाना भी ज़रूरी है। 

 

आओ मिलकर इक ज़िंदगी जी ले। 

साथ साथ ....

आओ इक दीपक जला ले।

साथ साथ ....

आओ इक बार गले मिल ले। 

फिर से ....

सोचो .... 

क्या इसके लिए दिवाली या ईद ज़रूरी है। 

 

दिलों में यह जो दूरियाँ है। 

इन्हें कम करना होगा। 

जब साथ में ही रहना है। 

तो ....

कुछ क़दम साथ चलना होगा। 

बहुत जी लिए अपने लिए। 

लेकिन ....

अब ....

दूसरों के लिए जीना भी ज़रूरी है। 


पास पास बैठो कभी। 

यूँ दूर से क्यूँ बात करते हो। 

कुछ तुम अपने दिल की कहो। 

कुछ तुम उसके दिल की सुनो। 

जानता हूँ .....

कुछ बातों के मतलब नहीं होते। 

लेकिन कभी कभी साथ में। 

एक चाय पीना ज़रूरी है।