मैं वो ही हूँ
जो सड़क के नीचे वाले
सरकारी स्कूल में पढ़ता था।
सीमित ही सही
पर साफ़ सुथरे
कपड़े धारण करता था।
मेरा घर
उसी सड़क के नीचे पड़ता था।
शायद मेरे शहर में
हरेक का स्तर
सड़क के ऊपर
या नीचे होना ही तय करता था।
हवा तुम्हारे घर को
और मेरे घर को
बराबर ही मिलती थी।
पर हाँ सूरज की किरणें
तुम्हारे घर पर
कुछ ज़्यादा ही गिरती थीं।
सब समय का फेर है
वो सड़क
आज भी वैसी ही है।
मेरा घर
आज भी
उसी सड़क के नीचे ही है।
लेकिन आज ...
सब कुछ बदल सा गया है।
सूरज की किरणें ...
मेरे साथ साथ चलती है।
हवायें ...
मेरे साथ रूख बदलतीं हैं।
अगले जनम में
किसी के साथ
तुम इतना ज़ुल्म ना करना।
इक सड़क से
किसी की हैशियत
तय ना करना।
मैं आज
ना जाने कितनी लम्बी सड़कें बनाता हूँ
नए नए शहरों को
बसाता हूँ।
कुछ घर सड़क के ऊपर और कुछ नीचे
आज भी बनते है।
वैसी ही पहाड़ी पर
जहाँ कभी एक घर मेरा भी था।
Saralta ki apni hi Geherai hoti hai
ReplyDeleteजी हाँ
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