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Tuesday, 6 December 2016

एक हसींन खयाल

मिले फ़क़त इतना वक़्त तेरे ख़याल हो जाए
जहां का सुकून भी हसरत ए बेज़ार हो जाए
कभी जो तनहा पा सकूं खुदको तेरे एहसास से
उस लम्हा चाँद भी बेदाग़ हो जाए

यूँ गुज़र के लम्हे में उम्र गुज़रती है
नज़रों पे करम तेरा रुखसार हो जाए
एक हसींन मुलाकात मेरे नसीबवर हो
ज़िन्दगी रंगीन बेशुमार हो जाए

तेरे तस्सवुर से ही जो रूह में लौ सी जलती है
उस रौशनी का खुदा भी तलबगार हो जाए
एक ज़िन्दगी नहीं काफी तुझे यूँ चाहने को
एक ख्याल पे एक ज़िंदगी निसार हो जाए

अगर तुम होती

हर चेहरे में ढूँढता हूँ चेहरा तेरा,
हर शख्स में तेरा अक्श ढूंढता हूँ
तेरे सलीके से बंधे बाल, तेरी बोलती आंखे, तेरे तीखे से नाक नक्श ढूंढता हूँ पर
क्या जानती हो तुम की अगर तुम होती तो ये ना होता।

मन की गहराईयों से निकल आती हैं यादें तेरी
अतीत की उन गलियों से जब भी गुजरता हूँ
आज भी अपने आप को कभी कभी दूर रूका हुआ तेरा इंतजार करता पाता हूँ पर
क्या जानती हो तुम की अगर तुम होती तो ये ना होता।

कभी एकेले में बैठ अपनी हिम्मत को दाद दे, अपनी ही पीठ थपथपा देता हूँ
वो बहाने बना बना तेरे घर आना, तेरे बाप भाई से झूठे ही दोस्ती बढाना
आज भी यादों के सहारे कभी कभी तेरे घर घुम आता हूँ पर
क्या जानती हो तुम की अगर तुम होती तो ये ना होता।

हजारों सपने टूट कर बिखर जाते हैं एक बार फिर
जब अतीत से निकल वर्तमान में झांकती हो तुम
बिखरे सपने सिमेटते हुए बस यही सोचता हूँ
क्या जानती हो तुम की अगर तुम होती तो ये ना होता।

Sunday, 13 November 2016

कैशलेस हम कैशलेस तुम

वो दिन जब 4 दोस्त एक प्लेट का पैसा देते थे
सिगरेट का कश भी बाँट बाँट के लेते थे

दस रुपये पर हॉस्टल का कमरा अखाड़ा बनता था
कैंटीन की उधारी पर पूरा महीना चलता था

डेट पे जाने का मतलब दोस्तों पे उधारी थी
कभी सिर्फ कॉफ़ी तो कभी चाय भी भारी थी

फिर भी दिल में करीबी थी
दोस्त के लिए हर वक़्त अमीरी थी

कमी में भी मन में एक सुकून सा था
दिलों में रवानी जिगर में खून सा था

आज फिर कुछ वैसा समां आया है
जेब में नोट हैं मगर गरीबी का साया है

फिर भी दिल में सुकून सा है
फिर कॉलेज का जुनून सा है

मस्ती मज़ाक लौट आया है पैसे पर
मुफ्त लिखा ज़्यादा जचता है सैशे पर

कॉलेज की सी ज़िन्दगी फिर मिली है बटोर लो
इस जीवन से ये कुछ पल तोड़ लो

एक सिगरेट फिर से बाँट के देखो यारों
एक मैग्गी की प्लेट साथ सपोड़ लो

Monday, 7 November 2016

चलता रह की जिंदगी ने कुछ सबक और सिखाने हैं॥

न रूक, न निराश हो कर बैठ राह में
चलता रह की जिंदगी ने कुछ सबक और सिखाने हैं॥
न परवाह कर पांव मे पङे हुए छालोंं की,
बहुत छोटे हैं ये, अभी तो घाव कुछ बङे और खाने हैं।
चलता रह की जिंदगी ने कुछ सबक और सिखाने हैं॥


आज तुम छोङ आए हो अपनों को, कल अपने तुम्हे छोङ जाएंगे,
तब दुख न करना इसका क्योंकी ये तो जिदंगी के कुछ नियम पुराने हैं।
चलता रह की जिंदगी ने कुछ सबक और सिखाने हैं॥


पैसे की चमक देख, जो तूने मतलब के दोस्त बना रखे हैं,
एेसी मतलब की दोस्ती से कुछ उम्मीद न रखना,
क्योंकी वक्त पडने पर ये सभी मुंह फेर जाने है।
भुलाए बैठा है तू जिन बचपन के यारों को, याद रखना बुरे वक्त में वही तेरे काम आने हैं।
चलता रह की जिंदगी ने कुछ सबक और सिखाने हैं।


ऊचाईयों पर पहुंचने की चाह में, जिन रिश्तों पर तू पैर रख चढ़ आया है
अपनी लोभ पिपासा में, दर्द में कराहते उन रिश्तों को राह में छोङ बढ़ आया है।
भूले नही हैं तुझे पर मजबूर हैं, तू ही नही याद करता कभी, यही सोच कर दूर हैं
कभी बुला कर देख, सिर्फ यही हैं जो तेरी एक आवाज पर चले आने हैं।
चलता रह की जिंदगी ने कुछ सबक और सिखाने हैं।

सोचता है तू, जलते है तेरे अपने तेरी उन्नति से
भाई बहन कुछ मांग न लें, तेरी अर्जित की संपति से
भूल गया तू पगले, तरी प्रगती की खातीर वो क्या क्या खोए हैं
तेरी बचपन की चोटों पर तुझ से ज्यादा वो रोए हैं।
एक बार बढ़ गले लगा, देख दिल कैसे उनके पिघल जाने हैं।
चलता रह की जिंदगी ने कुछ सबक और सिखाने हैं॥

हेम शर्मा

पटाखे की कहानी

पटाखे की कहानी
दिवाली के अगले दिन।
जब मैं रहा था घर का कूड़ा बीन।
मुझे एक बिन फूटा पटाखा मिल गया। 
मैंने पूछा। 
इतने सारे जलाए तू कैसे बच गया। 
सब तो बज गए फिर तू कैसे बच गया। 
वो बोला जब तक मेरी बारी आयी मैं डर गया। 
हम से ज़्यादा शोर तो तुम कर रहे थे।
प्रदूषण - प्रदूषण बोलकर हमें बोर कर रहे थे। 
अब मुझे जलाकर मुझे बदनाम मत करना।
और कूड़े में डालकर मेरा अपमान ना करना।
तुम्हारी दिवाली से अच्छा मैं वैलेंटायन में फूटना चाहूँगा। 
आत्महत्या करके भी शहीद कहलाऊँगा।
आत्महत्या करके भी शहीद कहलाऊँगा।

शतरंज की बिसात

शतरंज की बिसात
चलो आज मिलकर, शतरंज की एक नयी बिसात बिछाये। 
फ़ेज़ेज़ - फ़ेज़ेज़ बहुत खेल लिया, अब जाती का खेल रचाए। 
कोई फेंके पासे, तो कोई बना है ख़ुद मोहरा। 
कौन जीतेगा इस जंग में, कौन खाएगा ज़ख़्म गहरा।

बिल्डर, सिक्युरिटी, और पार्किंग, यह सब बातें है चार दिन की।
समस्याओं को और उलझाने का यह राज है बड़ा ही गहरा।
देखना है इस दिसम्बर ऊँट किस करवट बैठेगा। 
कितना साफ़ करे कोई, दागो से भरा है हर चहेरा।

आरोप - प्रत्यारोप इस माह और बढ़ जाएँगे। 
जो ना मिले थे कभी, वो सब साथ में नज़र आएँगे।
दुश्मन बनेंगे दोस्त, दोस्त दुश्मन बन जाएँगे। 
जान लो समझ लो, अभी से लगा लो अपने पर पहरा।
यह शतरंज का खेल बहुत है गहरा, यह खेल बहुत है गहरा।

बिछड़ गए

बिछड़ गए
देखते थे पलट कर वो हर रोज़, शायद चाहत उन्हें भी थी। 
कर ना पाए इजहारे इश्क़, वरना मुहब्बत उन्हें भी थी।

रोज़ करते थे उनका इंतज़ार हम, इक पेड़ के नीचे। 
इस बात की ख़बर उनको ही नहीं, पूरे शहर को थी।

वो उनका बात बात पर, जीभ से होटों को तर करना।
साँसों की तपिश इधर ही नहीं, उधर भी थी।

बड़ा ऐतबार था दिल को, कि एक दिन उनको पा लेंगे।
एक दूसरे को अपना लेने की ख़्वाहिश, इधर भी थी, उधर भी थी

उनकी एक झलक के खातिर, सबकुछ लुटा बैठे हम।
मगर उनकी डोली उठने की खबर, इधर कभी ना थी।

आज भी आँखों में उसकी, देखा मैंने प्यार मेरा।
एक बार मिलने की हसरत, इधर भी थी, उधर भी थी।

बिछड़ना नहीं था, फिर भी बिछड़ गए हम तुम।
जमाने से शिकायत, उसे ही नहीं मुझे भी थी।

Saturday, 5 November 2016

ज़िन्दगी से एक मुलाकात

ज़िन्दगी से एक मुलाकात

रात का सन्नाटा था
दरवाजे पे एक दस्तक हुई
सहमी सी धीमी आवाज़ मैं मैंने पूछा "कौन है?"
एक जानी पहचानी आवाज़ आई "ज़िन्दगी"

विश्वास नहीं था अपनी आँखों पे
मेरे सामने खड़ी थी मेरी ज़िन्दगी
सिल गए थे लब पर आँखों ने कह दिया
बस तुम्हारा ही तो इंतज़ार था, ऐ ज़िन्दगी

खो गयी थी दुनिया की भीड़ में
कहाँ जाना है, क्या पाना है
अनगिनत थे सवाल "क्या चाहती हो ज़िन्दगी?"
शिकवे थे अनेक "क्यों इतना सताती हो ज़िन्दगी!"

पर जब ज़िन्दगी से आमना सामना हुआ
न कुछ कहा न ही कुछ पूछा
बस ज़िन्दगी को गले लगाया
और मिल गए सारे जवाब

        कितने उतार चढ़ाव दिखती है ज़िन्दगी
        कभी हँसाती तो कभी रुलाती है ज़िन्दगी
        कैद करने की इसको कोशिश है व्यर्थ
        एक झरने की तरह बहती जाती है ज़िन्दगी

        एक खूबसूरत सफ़र है ज़िन्दगी
        साथ चले वो हमसफ़र है ज़िन्दगी
        जब तक जान है, साँसे चलेगी
        जब तक साँसे हैं, तब तक है ज़िन्दगी

        एक प्यारा सा एहसास है ज़िन्दगी
        जीने की उम्मीद और एक आस है ज़िन्दगी
        ख़ुशी दे या गम दे, अपने गले लगा लो
        खो कर जाना है, कितनी ख़ास है ज़िन्दगी

भूल नहीं सकती कभी वो रात
जब हुई थी ज़िन्दगी से एक मुलाकात

- सीमा शर्मा

Wednesday, 2 November 2016

क्यों दशहरा तुम मनाते हो

हमारे देश का आज यह हाल है की जब हमारी साहसी फ़ौज पाकिस्तान में जा आतंकियों को मारती है, उनपे सवाल उठा सबूत माँगा जाता है। और हाल में, जेल से भाग रहे SIMI आतंकी को मार गिराया, फिर से उनपर सवाल और उंगलियां उठ रही है, जांच की मांग हो रही है...

इस बात पे अपनी सोच प्रस्तुत कर रही हूँ...

 क्यों दशहरा तुम मनाते हो
******************

ऐ बुद्धिजीवी देश के मेरे
क्यों आतंकी पे अश्क बहाते हो।
इतना डूबे राजनीति में
देश-हित ही भूल जाते हो।
बार बार दिल पूछे मुझसे
क्यों दशहरा तुम मनाते हो।

रावण भी था बुरा मनुष्य
हुआ ढेर राम के वार से।
लंका भी उस दिन गूंजी थी
श्रीराम की जय जयकार से।

राजपूत ने ब्राह्मण को मारा
ना किसी ने सवाल उठाया था।
अयोध्या ने भी सबूत ना माँगा
कि राम ने ही तीर चलाया था।

इतना दूर भी क्यों जाते हो
पड़ोस में तुम्हे ले जाती हूँ।
लादेन को जब मार गिराया
वो दिन तुम्को याद दिलाती हूँ।

अमरीकी ने पाक में घुसकर
लादेन को जब तबाह किया।
चाहे democratic हो या republican
साथ में सबने 'वाह' किया।

Human rights की बात भुला कर
सबने खुशियाँ मनाई थी।
आपसी मतभेद से उठ कर
सबको सबने बधाई दी।

आतंकी पे रोने वालों
अब तो थोड़ी शर्म करो।
जिस सैनिक ने जान गवां दी
थोडा उस पे भी गर्व करो।

इतना डूबे राजनीति में
देश हित ही भूल जाते हो।
बार बार दिल पूछे मुझसे
क्यों दशहरा तुम मनाते हो।

Tuesday, 1 November 2016

दे दुश्मन को दे दे धुनकर

दे दुश्मन को दे दे धुनकर
है है हम में है है ये हुनर
अब बिगुल बजा मस्तक पे सजा
तलवारों से ले ले हुंकार

इतिहास ने डरना सीखा नहीं
और भविष्य डरा सकता नहीं
दुश्मन का सीना छलनी कर
के वर्तमान की है ये पुकार

कल कल करती नदियों से बहा
वो खून जो दुश्मन का मद है
दे दे आहुति दुश्मन की
धरती माँ का है ये उधार

उन पेड़ों की शाखायों को
जिनके पत्ते उसने तोड़ दिए
उन हाथों की हिम्मत फिर न हो
यूँ दुश्मन का तू कर संहार

निश्छल माँ की छाती पर
जिसने अगणित वार किए
उस दुस्साहस का चीर कर
दुगनी शक्ति से कर प्रहार

चुप्पी को कमज़ोरी समझ
जिसने मेरा अपमान किया
उस मन मातिष्क के धारी का
ध्वस्त हो यूँ कर उपचार

दे दुश्मन को दे दे धुनकर
है हम में है है ये हुनर

सुना है की हवा दूषित है

जरा सम्हाल के सांस लेना मेरे मिञों
सुना है की हवा दूषित है,
दूषित मन, दूषित तन और दूषित वचन से कहाँ कुछ होता है।
पर जरा सम्हाल के सांस लेना मेरे मिञों सुना है की हवा दूषित है,


तेरे प्रति वह द्वेष भाव, वह वैमनस्य पूर्ण मेरा स्वभाव, भला उससे कहीं कुछ होता है पर
जरा सम्हाल के सांस लेना मेरे मिञों सुना है की हवा दूषित है,


क्या हुआ जो मेरे ह्रदय मे तेरे लिए द्वेशाग्नि प्रखर प्रज्वलित है पर
जरा सम्हाल के सांस लेना मेरे मिञोंसुना है की हवा दूषित है,


पल पल तेरे अहित की चाह में मेरा मन अकुलाता है,
नींद मेरी उङ जाती है जब तू निश्चिन्त सो जाता है,
तेरे अशुभ की चाहत से मेरा हर कर्म प्रेरित है पर
 जरा सम्हाल के सांस लेना मेरे मिञों सुना है की हवा दूषित है,


मन का प्रदूषण कम करो तो दूषित हवा पर बात करें,
वातावरण का प्रदूषण कम करने को एक साथ आघात करें,
कुछ तुम बदलो कुछ हम बदलें,
मिलजुल संयुक्त प्रयास करें,
दूषित हवा की हवा बदल दें ।
एक स्वस्थ, आन्नदमयी वातावरण में स्वास लें॥ 

Thursday, 27 October 2016

दिवाली

दिवाली
हर दिवाली, पापा तुम बहुत याद आते हो।
जलाता हूँ दीपक, सजाता हूँ फूलों वाली माला।
माला के हर फूल में, दिये की हर जोत में।
मुझे तुम - सिर्फ़ तुम नज़र आते हो।

यूँ फूलों को पिरोकर माला बनाना, तुमसे ही तो सीखा है।
लम्बे से डंडे में मोमबत्ती बाँधकर अनार जलाना, तुमसे ही तो सीखा है।
मंदिर में सजे पीतल के बर्तनों को चमकाना, तुमसे ही तो सीखा है।

आज अपने बच्चों संग फिर दिवाली मनाऊँगा।
खील और खिलौनों से घर के मंदिर को सजाऊँगा।
सब साथ है मेरे, बस अब तुम ही नज़र नहीं आते।
साल के ३६५ दिन मुझे तो बस तुम ही हो याद आते।

एक दिन के लिए ही सही, मेरे पास तो आ जाओ।
दूर से ही सही।
इन उलझी हुई मालाओं की गुत्थी तो सुलझा जाओ।
बहुत इच्छा है एक और दिवाली तुम्हारे साथ मनाने की।
मेरे इन ख़ाली दियों में, कभी तो तेल भर जाओ।
बहुत याद आते हो पापा।
एक दिवाली फिर से हमारे साथ मना जाओ। 

बहुत जोर से चुभता है।

सुबह की सैर पर, पड़ोस के पार्क में जो गाड़ी ले कर जाते हैं।
बहुत जोर से चुभता है जब वो प्रदूषण पर चिंता जताते हैं॥

BONFIRE के नाम पर जब वो, जंगल काट जलाते हैं।
बहुत जोर से चुभता है जब वो प्रदूषण पर चिंता जताते हैं॥

ब़च्चों का जन्मदिन हो, या शादी की सालगिरह अपने घर के आंगन में BAR BE QUE कह कर वो कोयला खूब जलाते हैं 
बहुत जोर से चुभता है जब वो प्रदूषण पर चिंता जताते हैं॥

अपनी सुविधा की खातिर, हर नियम कानून रख ताक पर।
घर में अपने चौबीस घंटे वो चार चार AC चलाते हैं॥
बहुत जोर से चुभता है जब वो प्रदूषण पर चिंता जताते हैं॥

एे मेेरे देेश के ज्ञानचंदो, म़ाफ करो, न इतना ज्ञान बघारो तुम।
जग भला व सुधरा दिखेगा तुमको, पर पहले अपनी आदते सुधारो तुम॥

हेम शर्मा 

Tuesday, 25 October 2016

इक आवाज़

इक आवाज़
ढूंढता रहता हूँ इक आवाज़ को 
कभी शब्दों में
तो कभी तस्वीरो में
जिसकी कसक से दिल मचला था 
चहेरे बहुत है यहां भीड़ में
मगर उस सा कोई नहीं 

इसी कश्मकश में कर ली
बहुत सी बातें उससे
लिख - लिख कर
शब्दों के गिरेबान में भी झाँक आये हम
मगर जो बात उस आवाज़ में थीं
वो शब्दो में नहीं 

शायद कुछ
आवाज़ों के चहेरे नहीं होते
यही सोचकर तस्वीरों को पड़ना चाहा
कोशिश बहुत की उन्हें सुनने की 
मगर जो बात उस आवाज़ में थीं
वो तस्वीर में भी नहीं