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Thursday, 13 October 2016

सरहद पर दिवाली

                   सरहद पर दिवाली

याद बहुत आती है मुझको वह सुंदर पंक्ति दीयों वाली।
जगमग करते गली चौबारे जगमगाते आंगन उपवन ।
सजी हुई पूजा की थाली, आनन्दित हर मन चितवन ॥
सजे हुए मेरे बंधु बांधव वह हर्षोल्लास की दीवाली।
याद बहुत आती है मुझको वह सुंदर पंक्ति दीयों वाली ॥
सरहद पर हूं खडा सोचता, इस बार तो घर को जाऊँ मैं ।
फिर वही पहले की भांति उन्मुक्त हो दीप जलाऊँ मै ॥
स्वछंद उडूँ उस नील गगन में, शाख शाख पर जाऊँ मैं ।
घर घर जा शुभकामनाएँ दूँ और शुभकामनाएँ पाऊँ मैं ॥
भूलाए नही भूलती मुझको जगमग रात मोतियों वाली ।
याद बहुत आती है मुझको वह सुंदर पंक्ति दीयों वाली ॥
पर दूसरे ही पल खडे सरहद पर फ़र्ज  याद आता है मुझको, और याद आती है वह शपथ देश पर मरने वाली ।
ख़ुब जगमग करो रोशनी, धूमधाम से मनाओ दिवाली,
जब तक हूँ मैं खड़ा सरहद पे न पडने दूँगा छाया काली ॥
बस इतना कर देना मेरे मित्रों, कुछ दिए भेज देना सरहद पर लगा बाती प्रेम वाली । क्योंकि
याद बहुत आती है मुझको वह सुंदर पंक्ति दीयों वाली ॥

हेम शर्मा 

2 comments:

  1. बोहोत ही सशक्त प्रस्तुतीकरण भावनाओं का वो भी हर उस जवान की जो सरहद पर पहरा देता है ताकि हम यहाँ चैन से सो सकें

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  2. वीर रस की कविता, भाव विभोर कर दिया आपने हेम जी!

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