यादों के पन्ने
दिल टूटने का मंज़र सभी को याद है।
मिलते थे हम जब तन्हाई में।
किसी को दिखता ना था।
आज तेरी रूसवाई की चर्चा।
पूरे शहर में है।
प्यार में तूने दिए जो ज़ख़्म।
दिखाऊँ कैसे।
मिलते थे हम जब तन्हाई में।
किसी को दिखता ना था।
आज तेरी रूसवाई की चर्चा।
पूरे शहर में है।
प्यार में तूने दिए जो ज़ख़्म।
दिखाऊँ कैसे।
पूछता है हर कोई उन गलियों का पता।
मिल जाते हो आज भी जहाँ।
तुम अक्सर।
बहुत सी यादें बसतीं है।
आज भी उन गुमनाम गलियों में।
उन यादों को सबकी नज़रों से।
छिपाऊँ कैसे।
मिल जाते हो आज भी जहाँ।
तुम अक्सर।
बहुत सी यादें बसतीं है।
आज भी उन गुमनाम गलियों में।
उन यादों को सबकी नज़रों से।
छिपाऊँ कैसे।
संभाल कर रक्खे है यादों के सभी फूल।
भेजे थे तूने मुझको।
जो कभी फ़ुर्सत में।
पलटेगा मेरी यादों के पन्ने गर कोई।
सूखें हुए फूलों की वो पंखुडिया नज़र आएँगी।
बेवजह नाम तेरा निकलेगा।
बात बिना बात के बड़ी दूर तलक जाएगी।
यादों के पन्नों से उन्हें अब।
हटाऊँ कैसे।
भेजे थे तूने मुझको।
जो कभी फ़ुर्सत में।
पलटेगा मेरी यादों के पन्ने गर कोई।
सूखें हुए फूलों की वो पंखुडिया नज़र आएँगी।
बेवजह नाम तेरा निकलेगा।
बात बिना बात के बड़ी दूर तलक जाएगी।
यादों के पन्नों से उन्हें अब।
हटाऊँ कैसे।
दिल में थी जो बात।
दबा रक्खी है अब तक होंटो पे।
पूछते है सब मेरी बेवसी का सबब।
छुपी है बात जो।
कई बरसों से।
उसको अब होंटो तलक।
लाऊँ कैसे।
दबा रक्खी है अब तक होंटो पे।
पूछते है सब मेरी बेवसी का सबब।
छुपी है बात जो।
कई बरसों से।
उसको अब होंटो तलक।
लाऊँ कैसे।
कहते है लोग।
तू कबका मुझको भूल गया।
बहुत चाहा मैंने भी भूलना तुझको।
तेरे जैसा हुनर मुझको भो कोई सिखलादें।
ये अपनों को भुलाने का हुनर मैं।
पाऊँ कैसे।
प्यार में तूने दिए जो ज़ख़्म।
दिखाऊँ कैसे।
तू कबका मुझको भूल गया।
बहुत चाहा मैंने भी भूलना तुझको।
तेरे जैसा हुनर मुझको भो कोई सिखलादें।
ये अपनों को भुलाने का हुनर मैं।
पाऊँ कैसे।
प्यार में तूने दिए जो ज़ख़्म।
दिखाऊँ कैसे।
बहुत खूब। the speed with which you are writing is amazing
ReplyDeleteइतनी सारी कविता पड़ने का हुनर
लाऊं कैसे
Thanks Harish Bhai
Deleteविरह रस के कवि श्री अजय सिंघल जी, आपको शत शत नमन!
ReplyDeleteThanks Kavita ji
Deleteबहुत खूब। the speed with which you are writing is amazing
ReplyDeleteइतनी सारी कविता पड़ने का हुनर
लाऊं कैसे