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Tuesday, 25 October 2016

हम - तुम

हम - तुम 
लगता है कल ही मिले थे हम-तुम।
कितनी जल्दी बीत गए।
ये बाईस बरस।
बस यूँ हीं पल भर में।।
यह प्यार का अहसास था।
या मुझ पर तुम्हारा विश्वास।
जो अपना सब कुछ छोड़-छाड़कर।
चलीं आयीं थीं तुम इस घर में।।

आज मैं जो कुछ भी हूँ।
मेरी हर सफलता का राज़ हो तुम।
तुम बिन कुछ भी हासिल ना हो पाता।
शक्ल हूँ मैं, पर मेरी आवाज़ हो तुम।
अब मैं - मैं ना रहा, तुम - तुम ना रहे।
दो जिस्म एक जान है हम-तुम।।
तन सौंप दिया, मन सौंप दिया।
एक दूजे बिन अधूरे है।
एक दिल के दो अरमान है हम-तुम।।

मेरी हर सोच को, एक नई दिशा दी।
हर मोड़ पर मेरा साथ दिया तुमने।
मेरे हर फ़ैसले पर मुहर लगाकर।
कठिन समय में अपना हाथ दिया तुमने।।
जब-जब दुखों के बादल आए।
मेरे पास खड़ी थीं तुम।
जीवन की हर मुश्किल आसाँ कर।
अपनेपन का अहसास दिया तुमने।।
यूँ तो बहुत उठते होंगे सवाल मन में।
पर मुझे कभी ना परेशाँ किया।
सब मुश्किल अपने पर लेकर।
अपनी ख़ुशीयों का बलिदान किया तुमने।।

अब तो बस यही तमन्ना है।
ज़िंदगी की हर शाम गुज़रे तेरी बाहों में।
काँटे सब चुन चुकाँ अजय।
फूल ही फूल रहें तेरी राहों में।।
जो छूट गया है जीवन में।
उसको भी मिलकर पा लेंगे।
गर फिर जन्म मिला हमको मनीषा।
तो फिर से तुझको अपना लेंगे।
तो फिर से तुझको अपना बना लेंगे।।

1 comment:

  1. मनीषा जी का क्या reaction था इस बोहोत ही ख़ास कृति पर

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